काल का पहिया ----- समय का चक्र चलता रहता है l भगवान ने गीता में कहा है --- कर्म करने के लिए तुम स्वतंत्र हो लेकिन उसके परिणाम से बच नहीं सकते l ' मनुष्य अहंकार के वशीभूत होकर स्वयं को भगवान समझने लगता है l अहंकार मनुष्य का दुर्गुण है इसलिए इस दुर्गुण से ग्रस्त मनुष्य छल - कपट , धोखा , षड्यंत्र , पीठ में छुरा भोंकना जैसे नीच कर्म करता है l ईश्वर तो श्रेष्ठता का समुच्च्य हैं और पाप कर्म करने वाले स्वयं को भगवान समझें , यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है l रावण और दुर्योधन केवल उस युग में ही नहीं हुए , वे हर युग में हुए हैं और उनका अंत सबका एक जैसा ही होता है l वे स्वयं तो डूबते ही हैं , अपना साथ देने वालों को भी ले डूबते हैं l यही उनका प्रारब्ध है l ईश्वर तो सदा से यही चाहते हैं कि मनुष्य की चेतना का स्तर ऊँचा उठे , वह कम से कम इनसान तो बने l जब तक मनुष्य स्वयं नहीं सुधरना चाहे , उसे कोई नहीं सुधार सकता l रावण को समझाने तो श्री हनुमान जी गए l अंगद , विभीषण और रावण की पत्नी मंदोदरी ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं सुधरा l दुर्योधन को समझाने तो साक्षात् भगवान कृष्ण गए l समझना तो दूर , वह तो उन्हें ही बंदी बनाने चला l ' जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है l '
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