पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'पथ तय करता है कि जीवन की मंजिल कहाँ है l नीति की राह पर चलें और उत्सव मनाएं l ' आचार्य श्री लिखते हैं ----- 'अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं है l गलत राह पर चलकर पाई गई यह चाँद दिनों की चकाचौंध दूसरों पर अपना प्रभाव कितना ही क्यों न डाले , परन्तु अंतर्मन खोखला ही रहता है , कभी भी तृप्ति का एहसास नहीं कर पाता है l ' कौरवों के पास जो ऐश्वर्य और वैभव था वह पांडवों के अधिकारों को कुचलकर प्राप्त था , इसलिए उसका अंत भी उससे कई गुना दर्दनाक था l धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा l जिनकी नियत में खोट होता है उनका अंत कभी भी भला नहीं हो सकता l भगवान ने इंद्र को सिंहासन देने हेतु वामन रूप धरकर बलि को छला l अपने छल के परिणाम में उन्हें बलि के दरबार में द्वारपाल होना पड़ा l भगवान राम ने सुग्रीव को बचाने के लिए बाली को छुपकर मारा था , अगले जन्म में कृष्णावतार के समय बाली का पुनर्जन्म व्याध जरा के रूप में हुआ और उसके द्वारा किए गए शर संधान से भगवान कृष्ण को देह त्यागनी पड़ी l इनसान हो या अवतार , सभी को परिणामों का सामना तो करना ही पड़ता है l
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