हमारे महाकाव्य जिस युग में भी लिखे गए हों , वे हर युग की समस्याओं के अनुरूप मार्गदर्शक हैं l उनमे हर समस्या का समाधान है l लेकिन कलियुग में लोगों में विवेक या सद्बुद्धि का अभाव होता है इसलिए वो इनसे प्रेरणा लेना ही नहीं चाहते l महर्षि को पता था कि कलियुग में धर्म और जाति के नाम पर बहुत दंगे होंगे , ये मनुष्य की स्वार्थ पूर्ति का साधन होंगे l उन्हें यह भी पता था कि कलियुग में भगवान राम बहुतों के आदर्श होंगे , उनकी पूजा करेंगे इसलिए उन्होंने बताया कि भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर खाए , निषादराज से मित्रता की l ईश्वर की निगाह में कोई ऊँच -नीच नहीं है l लेकिन कलियुग में केवल लोग चाहे किसी भी धर्म के हों वे केवल कर्मकांड करते हैं , अपने धर्म की शिक्षाओं पर कोई आचरण नहीं करता l रामायण से एक और सत्य सामने आता ही कि अत्याचारी , अन्यायी से सब लोग डरते तो हैं , लेकिन उन्हें अपने सुख वैभव की बड़ी तीव्र लालसा होती है इसलिए वे अत्याचार , अन्याय को देखते हुए भी अपना मुंह , आंख बंद रखते हैं l केवल विभीषण ने ही उस सुख वैभव का त्याग किया l भगवान राम का साथ तो मानव समाज में से किसी ने नहीं दिया , वे वनवासी थे l उन्होंने रीछ , वानरों की मदद से लंका पर विजय प्राप्त की l रावण का आतंक तो दसों दिशाओं में था , वह स्वयं राक्षसों को भेजता था कि जाओ , ऋषियों के हवन , यज्ञ और सत्कार्यों को नष्ट करो , अत्याचार कर के भय का वातावरण बनाओ जिससे सब नियंत्रण में रहें l
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