1. एक भक्त रोज गंगा स्नान कर के भगवान पर जल चढ़ाता था l एक दिन रास्ते में एक प्यासा मनुष्य रात भर के बुखार का मारा पड़ा था l पानी लाते देखकर उसने भक्त से पानी पिलाने की याचना की l भक्त डपट कर बोला ---- " मूर्ख , यह जल भगवान को चढ़ाना है , तुम्हारे जैसे अनेकों बीमार पड़े होंगे उन्हें कौन पानी पिलाता घूमे l " रात को भक्त ने सपने में देखा कि भगवान बीमार हो गए हैं l भक्त ने बीमारी का कारण पूछा तो भगवान बोले ----- " तूने पीड़ित मनुष्य की सहायता नहीं की , प्यासे मनुष्य की आवश्यकता पूरी न कर मेरे स्नान में जो जल काम आया वह मेरे लिए पाप रूप सिद्ध हुआ और उससे मैं बीमार पड़ गया l " दूसरे दिन से वह मनुष्य सच्चे ह्रदय से दीन दुःखियों की सेवा करने लगा l इसी को उसने ईश्वर भक्ति का सच्चा स्वरुप समझना आरम्भ कर दिया l
2 . एक दुःखी व्यक्ति अपनी व्यथा भगवान से एकांत में कहना चाहता था इसलिए रात के एकांत में वह मंदिर पहुंचा l दरवाजे पर देवदूत खड़े थे , उन्होंने कहा ---- " भाई , भगवान के लिए कोई उपहार लाये बिना तुम अन्दर नहीं जा सकते l " उस व्यक्ति ने रातों रात तीन चोरियां की l पहली बार राजमुकुट लाया तो देवदूतो ने कहा , परमात्मा को मुकुट की जरुरत नहीं है , इसे वापस ले जाओ l दूसरी बार तलवार लाया तो देवदूतों ने कहा --भगवान तो सर्वशक्तिमान हैं उनके लिए तलवार व्यर्थ है l तीसरी बार वह कहीं से वेद उठा लाया l देवदूतों ने यह कहकर कि भगवान तो स्वयं ज्ञान स्वरुप हैं , उनके लिए वेद की क्या आवश्यकता ? उस व्यक्ति को लौटा दिया l वह व्यक्ति बहुत उदास हो गया कि आखिर क्या दे भगवान को ? वह जा रहा था तभी एक गरीब अँधा व्यक्ति ठोकर खाकर गिर पड़ा l उस व्यक्ति ने उसे उसकी रात भर सेवा की l इस बार वह खाली हाथ पहुंचा तो देखा वहां देवदूत नहीं हैं और मंदिर का दरवाजा भी खुला है l वह समझ गया कि दींन -दुःखियों और जरुरतमंदों की निस्स्वार्थ भाव से सेवा करने से ही भगवान प्रसन्न होते हैं l
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