पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " पतन एक सहज गतिक्रम है , उठना पराक्रम है l पानी नीचे की ओर बड़ी तेजी से बहता है लेकिन यदि ऊपर चढ़ाना हो तो उसके लिए विशेष प्रयास करना पड़ता है l अचेतन की पाशविक प्रवृत्तियां बार -बार मनुष्य को घसीटकर विषयी बनने की ओर प्रवृत्त करती हैं l यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह इन पर किस प्रकार अंकुश लगा पाता है और प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग कर पाता है l " रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे ,-- दो प्रकार की मक्खियाँ होती हैं l एक तो शहद की मक्खियाँ , जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं खातीं और दूसरी साधारण मक्खियाँ , जो शहद पर भी बैठती हैं और यदि सड़ता हुआ घाव दिखलाई पड़े , तो तुरंत शहद को छोड़कर उस पर भी जा बैठती हैं l इसी प्रकार दो तरह के स्वभाव के लोग होते हैं l एक , जो ईश्वर में अनुराग रखते हैं , वे ईश्वर चर्चा के सिवाय कोई दूसरी बात करते ही नहीं , और दूसरे वे लोग होते हैं जो संसार में आसक्त जीव हैं , वे ईश्वर की बात सुनते -सुनते यदि किसी स्थान पर विषय की बातें होती हों , तो तुरंत भगवान की चर्चा छोड़कर उसी में संलग्न हो जाते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " संस्कारों में परिवर्तन करना आसान नहीं है l ईश्वर , आत्मा , कर्मफल , पुनर्जन्म जैसी मान्यताएं मनुष्य को संयमी , सदाचारी , कर्तव्यपरायण एवं उदार बनने की प्रेरणा देती हैं l व्यक्तिगत , सामाजिक , संस्कृतिक उत्थान इन्ही तत्वों के सहारे संभव होता है l यदि सत्प्रवृत्तियाँ न हों तो बुद्धि कौशल के रहते आदर्शहीन व्यक्ति केवल पिशाच ही बन सकते हैं l "
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