बचपन में तो बा को किसी ने पढ़ाया नहीं , पर बड़ी उम्र में वातावरण बदल जाने के कारण उनको पढ़ने का शौक हो गया l कभी किसी की मदद से तुलसी रामायण पढ़तीं और कभी गीता का अभ्यास करतीं l अपनी आयु के अंतिम वर्षों में आगा खां महल में कैद रहते हुए वे गांधीजी से गीता के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करना सीखतीं थीं l इन दोनों 75-75 वर्ष की आयु के ' शिक्षक और विद्दार्थी ' का द्रश्य देखते ही बनता था l
अपने गृहस्थ जीवन में बा ने प्राचीन भारतीय आदर्श का पालन कर के दुनिया को चकित कर दिया 35 वर्ष की आयु में गांधीजी ने यह निश्चय किया कि अब हम दोनों को काम वासना का त्याग कर भाई - बहन की तरह रहना चाहिए , तो बा ने इसे स्वीकार करने में कुछ भी आगा पीछा न
किया l और जीवन के पिछले 37 वर्ष ब्रह्मचर्य-व्रत को मनसा - वाचा - कर्मणा पालन करते हुए व्यतीत किये l इस सम्बन्ध में स्वयं गांधीजी का कथन है ----- " ब्रह्मचर्य - व्रत के पालन में बा ने कभी मेरा विरोध नहीं किया , या बा उसे कभी तोड़ने के लिए ललचाई नहीं l इसका फल यह हुआ कि हम दोनों का सम्बन्ध सच्चे मित्रों का सा हो गया l लेकिन मित्र होते हुए भी उसने पत्नी के नाते मेरे काम में समा जाने में अपना धर्म माना l यही कारण है कि मरते दम तक उसने मेरी सुख - सुविधा का ध्यान रखा l "
गांधीजी का यह कथन निराधार नहीं था l 22 फरवरी 1944 को ' बा ' का स्वर्गवास हुआ, उस दिन बा ने मनु बहन से कहा ---मनु , बापूजी की बोतल का गुड ख़त्म हो गया है l मेरे पास कई लोग बैठें हैं l तू जा , बापूजी को दूध और गुड़ देकर तू भी भोजन कर ले l ' यह थी सच्ची और निस्स्वार्थ सेवा भावना l जब यह मालूम है कि हम कुछ घंटों में इस संसार को छोड़ने वाले हैं , तब भी अपनी चिंता न कर के दूसरों का ख्याल रखना महानता का ;लक्षण है l
गांधीजी कहते थे ---" मेरी पत्नी मेरे अन्तर को जिस प्रकार हिलाती है , उस प्रकार दुनिया की कोई दूसरी स्त्री उसे हिला नहीं सकती l उसके लिए ममता के एक अटूट बंधन की भावना मेरे अन्तर में जाग्रत रहती है l
युग - पुरुष गाँधी को इतना प्रभावित कर के नारी जाति का महत्व बढ़ाना कोई साधारण बात नहीं है l श्रीमती सरोजिनी नायडू ने जो बा और बापू के साथ प्राय: रहती थीं , उनके देहावसान होने पर लिखा --- " जिस महापुरुष को वे चाहतीं , जिसकी वे सेवा करतीं और अद्वितीय श्रद्धा , धैर्य और भक्ति के साथ जिसका वे अनुसरण करतीं , उसके लिए वे निरंतर कुरबानी करती रहीं l जिस कठिन मार्ग को उन्होंने अपनाया था , उस पर चलते हुए उनके पैर एक क्षण के लिए भी लड़खड़ाये नहीं l वे मातृत्व से अमरत्व में गईं और हमारी गाथाओं , गीतों और हमारे इतिहास की वीरांगनाओं की मंडली में अपना वास्तविक स्थान पा गईं l "
अपने गृहस्थ जीवन में बा ने प्राचीन भारतीय आदर्श का पालन कर के दुनिया को चकित कर दिया 35 वर्ष की आयु में गांधीजी ने यह निश्चय किया कि अब हम दोनों को काम वासना का त्याग कर भाई - बहन की तरह रहना चाहिए , तो बा ने इसे स्वीकार करने में कुछ भी आगा पीछा न
किया l और जीवन के पिछले 37 वर्ष ब्रह्मचर्य-व्रत को मनसा - वाचा - कर्मणा पालन करते हुए व्यतीत किये l इस सम्बन्ध में स्वयं गांधीजी का कथन है ----- " ब्रह्मचर्य - व्रत के पालन में बा ने कभी मेरा विरोध नहीं किया , या बा उसे कभी तोड़ने के लिए ललचाई नहीं l इसका फल यह हुआ कि हम दोनों का सम्बन्ध सच्चे मित्रों का सा हो गया l लेकिन मित्र होते हुए भी उसने पत्नी के नाते मेरे काम में समा जाने में अपना धर्म माना l यही कारण है कि मरते दम तक उसने मेरी सुख - सुविधा का ध्यान रखा l "
गांधीजी का यह कथन निराधार नहीं था l 22 फरवरी 1944 को ' बा ' का स्वर्गवास हुआ, उस दिन बा ने मनु बहन से कहा ---मनु , बापूजी की बोतल का गुड ख़त्म हो गया है l मेरे पास कई लोग बैठें हैं l तू जा , बापूजी को दूध और गुड़ देकर तू भी भोजन कर ले l ' यह थी सच्ची और निस्स्वार्थ सेवा भावना l जब यह मालूम है कि हम कुछ घंटों में इस संसार को छोड़ने वाले हैं , तब भी अपनी चिंता न कर के दूसरों का ख्याल रखना महानता का ;लक्षण है l
गांधीजी कहते थे ---" मेरी पत्नी मेरे अन्तर को जिस प्रकार हिलाती है , उस प्रकार दुनिया की कोई दूसरी स्त्री उसे हिला नहीं सकती l उसके लिए ममता के एक अटूट बंधन की भावना मेरे अन्तर में जाग्रत रहती है l
युग - पुरुष गाँधी को इतना प्रभावित कर के नारी जाति का महत्व बढ़ाना कोई साधारण बात नहीं है l श्रीमती सरोजिनी नायडू ने जो बा और बापू के साथ प्राय: रहती थीं , उनके देहावसान होने पर लिखा --- " जिस महापुरुष को वे चाहतीं , जिसकी वे सेवा करतीं और अद्वितीय श्रद्धा , धैर्य और भक्ति के साथ जिसका वे अनुसरण करतीं , उसके लिए वे निरंतर कुरबानी करती रहीं l जिस कठिन मार्ग को उन्होंने अपनाया था , उस पर चलते हुए उनके पैर एक क्षण के लिए भी लड़खड़ाये नहीं l वे मातृत्व से अमरत्व में गईं और हमारी गाथाओं , गीतों और हमारे इतिहास की वीरांगनाओं की मंडली में अपना वास्तविक स्थान पा गईं l "
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