' गन्दा नाला गंगा में मिलकर पवित्र हो जाता है l ' ऐसे कई उदाहरण हैं जब प्रभु से जुड़ने के बाद जीवन की राह बदल गई ----- अंगुलिमाल डाकू के रूप में कुख्यात हो चुका था और अनेक नागरिकों की उँगलियाँ काटकर उनकी माला पहनकर घूमता था , तब प्रसेनजित की सेनाएं भी उससे हार मान गईं थीं l तब उसके पास चलकर गौतम बुद्ध आये l अंगुलिमाल ने उनसे कहा --- " भिक्षु ! मैं तुम्हे मार दूंगा l " अपराधी की मन: स्थिति कायर के समान ही होती है इसलिए वह उन्हें बार -बार रुकने को कह रहा था l तब तथागत बोले --- " रुकना तो तुझे है पुत्र ! मैं तो कभी का ठहरा हुआ हूँ l भाग तो तू रहा है --- जिन्दगी से , अपने आप से , अपने भगवान से l इतना कहते हुए वे नजदीक आ गए और जब तक वह कुछ समझ पाता, उनने उसे गले लगा लिया l
अंगुलिमाल को लोग ऊँगली दिखा - दिखाकर ताना मारते थे , पहली बार उसे सच्चा प्यार मिला l
धीरे - धीरे संघ में लोग चर्चा करने लगे कि एक अपराधी हमारे बीच रह रहा है l भगवन ने अंगुलिमाल से धैर्य रखने को कहा कि कोई प्रतिक्रिया न करे l भगवन बुद्ध के पास सभी भिक्षु जन आये और कहा कि अंगुलिमाल के संघ में शामिल होने से संघ की बदनामी हो रही है l "
बुद्ध बोले --- " वह तो पूर्व में डाकू था , अब भिक्षु है l पर अब तुममे से बहुत सारे डाकू बनने की दिशा में चल रहे हो , उसे मार डालने की सोच रहे हो l यह क्या कर रहे हो l " वास्तव में कुछ ऐसा ही सोच रहे थे l एक दिन भगवान ने अंगुलिमाल को भिक्षा मांगने भेजा , उसी क्षेत्र में जहाँ वह अपराधी बना था l लोगों में द्वेष था , गुस्सा था l उसे पत्थर खाने पड़े l चोट खाकर मूर्छित होकर गिर पड़ा l और कोई तो नहीं आया , बुद्ध भगवान आये , उसकी सेवा - शुश्रूषा की l जब वह चैतन्य हुआ तो कहा कि --- " तुम एक घुड़की दे देते , सब भाग जाते , क्यों मार खाते रहे ? "
अंगुलिमाल बोला --- " प्रभो ! कल तक मैं बेहोश था , आज ये बेहोश हैं l "
अंगुलिमाल को लोग ऊँगली दिखा - दिखाकर ताना मारते थे , पहली बार उसे सच्चा प्यार मिला l
धीरे - धीरे संघ में लोग चर्चा करने लगे कि एक अपराधी हमारे बीच रह रहा है l भगवन ने अंगुलिमाल से धैर्य रखने को कहा कि कोई प्रतिक्रिया न करे l भगवन बुद्ध के पास सभी भिक्षु जन आये और कहा कि अंगुलिमाल के संघ में शामिल होने से संघ की बदनामी हो रही है l "
बुद्ध बोले --- " वह तो पूर्व में डाकू था , अब भिक्षु है l पर अब तुममे से बहुत सारे डाकू बनने की दिशा में चल रहे हो , उसे मार डालने की सोच रहे हो l यह क्या कर रहे हो l " वास्तव में कुछ ऐसा ही सोच रहे थे l एक दिन भगवान ने अंगुलिमाल को भिक्षा मांगने भेजा , उसी क्षेत्र में जहाँ वह अपराधी बना था l लोगों में द्वेष था , गुस्सा था l उसे पत्थर खाने पड़े l चोट खाकर मूर्छित होकर गिर पड़ा l और कोई तो नहीं आया , बुद्ध भगवान आये , उसकी सेवा - शुश्रूषा की l जब वह चैतन्य हुआ तो कहा कि --- " तुम एक घुड़की दे देते , सब भाग जाते , क्यों मार खाते रहे ? "
अंगुलिमाल बोला --- " प्रभो ! कल तक मैं बेहोश था , आज ये बेहोश हैं l "
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