बुद्धि तो सहज रूप में सभी को प्राप्त होती है -- किसी को कम , किसी को ज्यादा l लेकिन बुद्धि यदि भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बन जाये तो वह व्यक्ति का स्वयं का तो पतन करती ही है , उसके क्रिया - कलाप समाज को भी क्षति पहुंचाते हैं l जिस प्रकार द्रष्टि दोष होने के कारण मात्र नजदीक की वस्तुएं ही दीख पड़ती हैं और दूर रखी हुई वस्तुओं को पहचानना कठिन होता है उसी प्रकार दुर्बुद्धिग्रस्त व्यक्ति तात्कालिक लाभ को ही सब कुछ समझता है , किस कृत्य का भविष्य में क्या परिणाम होगा , इसका अनुमान नहीं लगा पाता l तात्कालिक लाभ कमाने की अविवेकपूर्ण कामना की वजह से ही समाज में भ्रष्टाचार , अनाचार , अत्याचार , अन्याय , शोषण बढ़ा है l
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