पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वाङ्मय ' महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग ' में लिखा है ----- ' सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण से पहले यहाँ की आंतरिक दशा का पता लगाने भेदिये भेजे , जिन्होंने आकर समाचार दिया कि इसमें कोई संदेह नहीं कि वीरता भारतीयों की बपौती है , किन्तु उनकी सारी विशेषताओं को एक नागिन घेरे हुए है जिसे ' फूट ' कहते हैं l इसी फूट रूपी नागिन के विष से भारतीयों की बुद्धि मूर्छित हो चुकी है l
सिकन्दर ने भारतीयों में फैली इस फूट की विष बेल का फायदा उठाया और उसने शीघ्र ही उस तक्षक का पता लगा लिया , जो प्रोत्साहन पाकर भारत की स्वतंत्रता पर फन मार सकता है l और वह था ---- तक्षशिला का दम्भी राजा आम्भीक l यह महाराज पुरु से द्वेष रखता था और ईर्ष्या - द्वेष में अँधा था l
सिकन्दर ने अवसर का लाभ उठाया और लगभग पचास लाख रूपये की भेंट के साथ सन्देश भेजा , यदि महाराज आम्भीक सिकन्दर की मित्रता स्वीकार करे तो वह उन्हें पुरु को जीतने में मदद करेगा और सारे भारत में उनकी दुन्दुभी बजवा देगा l सिकन्दर द्वारा भेजी भेंट और सन्देश पाकर द्वेषान्ध , अहंकारी आम्भीक होश खो बैठा और वह देश के साथ विश्वासघात कर के सिकन्दर का स्वागत करने के लिए तैयार हो गया l भारत के गौरवपूर्ण चन्द्र - बिम्ब में एक कलंक बिन्दु लग गया l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' जब कोई पापी किसी मर्यादा की रेखा का उल्लंघन कर उदाहरण बन जाता है , तब अनेकों को उसका उल्लंघन करने में अधिक संकोच नहीं रहता l आम्भीक की
देखा देखी अनेक राजा सिकन्दर से जा मिले l किन्तु अभागे आम्भीक जैसे अनेक देश - द्रोहियों के लाख कुत्सित प्रयत्नों के बावजूद भी एक अकेले देशभक्त पुरु ने भारतीय गौरव की लाज रखकर संसार को सिकन्दर से पद - दलित होने से बचा लिया l भारतीय इतिहास में महाराज पुरु का बहुत सम्मान है , केवल वही एक ऐसे वीर पुरुष हैं , जिसने पराजित होने पर भी विजयी को पीछे हटने पर विवश कर दिया l
सिकन्दर ने भारतीयों में फैली इस फूट की विष बेल का फायदा उठाया और उसने शीघ्र ही उस तक्षक का पता लगा लिया , जो प्रोत्साहन पाकर भारत की स्वतंत्रता पर फन मार सकता है l और वह था ---- तक्षशिला का दम्भी राजा आम्भीक l यह महाराज पुरु से द्वेष रखता था और ईर्ष्या - द्वेष में अँधा था l
सिकन्दर ने अवसर का लाभ उठाया और लगभग पचास लाख रूपये की भेंट के साथ सन्देश भेजा , यदि महाराज आम्भीक सिकन्दर की मित्रता स्वीकार करे तो वह उन्हें पुरु को जीतने में मदद करेगा और सारे भारत में उनकी दुन्दुभी बजवा देगा l सिकन्दर द्वारा भेजी भेंट और सन्देश पाकर द्वेषान्ध , अहंकारी आम्भीक होश खो बैठा और वह देश के साथ विश्वासघात कर के सिकन्दर का स्वागत करने के लिए तैयार हो गया l भारत के गौरवपूर्ण चन्द्र - बिम्ब में एक कलंक बिन्दु लग गया l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' जब कोई पापी किसी मर्यादा की रेखा का उल्लंघन कर उदाहरण बन जाता है , तब अनेकों को उसका उल्लंघन करने में अधिक संकोच नहीं रहता l आम्भीक की
देखा देखी अनेक राजा सिकन्दर से जा मिले l किन्तु अभागे आम्भीक जैसे अनेक देश - द्रोहियों के लाख कुत्सित प्रयत्नों के बावजूद भी एक अकेले देशभक्त पुरु ने भारतीय गौरव की लाज रखकर संसार को सिकन्दर से पद - दलित होने से बचा लिया l भारतीय इतिहास में महाराज पुरु का बहुत सम्मान है , केवल वही एक ऐसे वीर पुरुष हैं , जिसने पराजित होने पर भी विजयी को पीछे हटने पर विवश कर दिया l
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