' पाप एवं दुष्कर्म ही एकमात्र दुःख का कारण नहीं होते , अयोग्यता , मूर्खता , निर्बलता , निराशा , फूट , निष्ठुरता , आलस्य भी ऐसे दोष हैं जिनका परिणाम पाप के समान और कई बार उससे भी अधिक दुःखदायी होता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' आप कठिनाइयों से बचना या छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपने भीतरी दोषों को ढूंढ़ निकालिए और उन्हें निकाल बाहर करने में जुट जाइये l दुर्गुणों को हटाकर उनके स्थान पर आप सद्गुणों को अपने अंदर जितना स्थान देते जायेंगे , उसी अनुपात के अनुसार आपका जीवन विपत्ति से छूटता जायेगा l
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