वैज्ञानिक प्रगति के कारण मनुष्य अपने को सर्वशक्तिमान समझने लगा है l इस विकास से पहले लोग ईश्वर के प्रति आस्था को आवश्यक समझते थे l मनुष्यों को एक अज्ञात शक्ति के प्रति आस्था थी कि कोई एक शक्ति है जो सब जड़ - चेतन का नियमन करती है l लेकिन इस विकास से बढ़ते अहंकार ने मनुष्य की आस्था को समाप्त कर दिया l अब वह प्रकृति में हस्तक्षेप कर स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगा है और अपनी तृष्णा , लोभ - लालच के कारण प्रकृति के शुद्ध और पवित्र अनुदान में भी मिलावट कर प्रकृति को चुनौती देने लगा है l मिटटी में रसायन मिल गया तो उसकी उपज खाकर नियम - संयम से रहने वाला भी बीमार हो गया l हमारी श्वास पर ईश्वर का नियंत्रण है , हमारे ऋषियों ने हमें तरीका भी सिखाया कि खुली हवा में गहरी श्वास लेनी चाहिए लेकिन अपने को सर्वशक्तिमान समझने वाला मनुष्य इस पर भी अपना नियंत्रण चाहता है l
प्रकृति ने , ईश्वर ने हमें जो अनुदान दिए वे सब हमारे कल्याण के लिए हैं , इसमें ईश्वर का कोई स्वार्थ नहीं है लेकिन शक्ति और साधन संपन्न अहंकारी मनुष्य लोगों की भलाई का कोई कार्य करता भी दीखता है तो उसमे उसका बहुत बड़ा स्वार्थ छिपा होता है l
पुराणों में कथा है कि हिरण्यकश्यप ने बहुत शक्ति व साधन एकत्र कर लिए और स्वयं को भगवान कहने लगा l सब प्रजाजनों को आदेश दे दिया कि उसी को भगवान मानकर पूजें l मनुष्य की महत्वाकांक्षा का चरम स्तर यही है l सत्य और धर्म की राह पर चलकर मनुष्य राम और कृष्ण बनता है , युगों तक पूजा जाता है लेकिन अनीति की राह पर चलकर रावण , कुम्भकरण और हिरण्यकश्यप बनता है और धिक्कारा जाता है l
प्रकृति ने , ईश्वर ने हमें जो अनुदान दिए वे सब हमारे कल्याण के लिए हैं , इसमें ईश्वर का कोई स्वार्थ नहीं है लेकिन शक्ति और साधन संपन्न अहंकारी मनुष्य लोगों की भलाई का कोई कार्य करता भी दीखता है तो उसमे उसका बहुत बड़ा स्वार्थ छिपा होता है l
पुराणों में कथा है कि हिरण्यकश्यप ने बहुत शक्ति व साधन एकत्र कर लिए और स्वयं को भगवान कहने लगा l सब प्रजाजनों को आदेश दे दिया कि उसी को भगवान मानकर पूजें l मनुष्य की महत्वाकांक्षा का चरम स्तर यही है l सत्य और धर्म की राह पर चलकर मनुष्य राम और कृष्ण बनता है , युगों तक पूजा जाता है लेकिन अनीति की राह पर चलकर रावण , कुम्भकरण और हिरण्यकश्यप बनता है और धिक्कारा जाता है l
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