पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वाङ्मय ' मरकर भी अमर हो गए जो ' में लिखा है ---- ' अहंकार सारी अच्छाइयों के द्वार बंद कर देता है l ' अहंकार के मद में लोग इतने मत्त हो जाते हैं कि , इस बात पर विचार ही नहीं करते कि उनके अहंकार के नीचे दबकर कितने निरपराध तथा असहाय लोगों का बलिदान हो रहा है ? यदि धन है तो उसके बल पर लोगों को खरीदकर अपना अधीनस्थ बनाने में बड़प्पन अनुभव किया करते हैं l दूसरों की उन्नति तथा प्रगति देखकर जल उठना वे मनुष्य का सहज स्वभाव मानते हैं और दूसरों के विकास में बाधा डालना वे अर्थ अथवा राजनीति माना करते हैं l अपने दम्भ की तुष्टि में बड़ी से बड़ी सामाजिक , राष्ट्रीय अथवा मानवीय हानि कर डालने में किंचित संकोच नहीं करते l अपनी इस दुर्बलता पर जरा सा आघात पाकर सर्प की तरह कुपित होकर अपना अथवा पराया अनिष्ट कर डालने पर तत्पर हो उठते हैं l
मनुष्य की यह अमानवीय प्रवृति पाप के अंतर्गत आती है , जो इस लोक में तो शांति , संतोष , शीतलता , निर्भयता का सुख अनुभव नहीं करने देती , और परलोक में भी सद्गति से वंचित कर देती है l प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता अत: देर - सबेर उसका दंड मिलना निश्चित है l '
आचार्य श्री ने लिखा है --- मानव जीवन एक अलभ्य अवसर है l संसार की सुख - शांति तथा सुंदरता बढ़ाने के लिए ही परमात्मा ने यह मानव - जीवन प्रदान किया है l इस मंतव्य में ही इसको लगाए रखना जीवन की सुरक्षा तथा सम्मान करना है l
मनुष्य की यह अमानवीय प्रवृति पाप के अंतर्गत आती है , जो इस लोक में तो शांति , संतोष , शीतलता , निर्भयता का सुख अनुभव नहीं करने देती , और परलोक में भी सद्गति से वंचित कर देती है l प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं होता अत: देर - सबेर उसका दंड मिलना निश्चित है l '
आचार्य श्री ने लिखा है --- मानव जीवन एक अलभ्य अवसर है l संसार की सुख - शांति तथा सुंदरता बढ़ाने के लिए ही परमात्मा ने यह मानव - जीवन प्रदान किया है l इस मंतव्य में ही इसको लगाए रखना जीवन की सुरक्षा तथा सम्मान करना है l
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