29 June 2020

WISDOM ----- अहंकार आसुरी प्रवृति है

  पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  वाङ्मय ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '    में  लिखा  है  ----  ' अहंकार  सारी   अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l '   अहंकार  के  मद  में  लोग  इतने  मत्त   हो  जाते  हैं  कि ,  इस  बात  पर  विचार  ही  नहीं  करते   कि   उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर   कितने  निरपराध  तथा  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  रहा  है  ?  यदि  धन  है   तो  उसके  बल  पर  लोगों  को  खरीदकर   अपना  अधीनस्थ  बनाने  में   बड़प्पन  अनुभव  किया  करते  हैं  l   दूसरों  की  उन्नति  तथा  प्रगति   देखकर  जल  उठना   वे  मनुष्य  का  सहज  स्वभाव   मानते  हैं   और  दूसरों  के  विकास  में  बाधा  डालना   वे  अर्थ  अथवा   राजनीति   माना  करते  हैं   l   अपने  दम्भ  की  तुष्टि  में   बड़ी  से  बड़ी  सामाजिक , राष्ट्रीय   अथवा  मानवीय  हानि   कर  डालने  में   किंचित  संकोच  नहीं  करते  l   अपनी  इस  दुर्बलता  पर   जरा  सा  आघात  पाकर   सर्प  की  तरह  कुपित  होकर   अपना  अथवा  पराया   अनिष्ट  कर  डालने  पर  तत्पर  हो  उठते  हैं  l
  मनुष्य  की  यह  अमानवीय  प्रवृति   पाप  के  अंतर्गत  आती  है  ,  जो  इस  लोक  में  तो  शांति , संतोष , शीतलता , निर्भयता   का  सुख  अनुभव   नहीं  करने  देती  ,  और  परलोक  में  भी  सद्गति  से   वंचित  कर  देती  है  l  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता  अत:  देर - सबेर   उसका  दंड  मिलना  निश्चित  है  l '
    आचार्य श्री  ने  लिखा  है --- मानव  जीवन  एक  अलभ्य  अवसर  है   l  संसार  की  सुख - शांति   तथा  सुंदरता  बढ़ाने  के  लिए   ही  परमात्मा   ने  यह  मानव - जीवन  प्रदान  किया  है  l   इस  मंतव्य  में  ही  इसको  लगाए  रखना   जीवन  की  सुरक्षा  तथा  सम्मान  करना  है  l 

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