हमारे इतिहास में अनेकों ऐसी घटनाएं हैं जो हमें शिक्षा देती हैं कि शत्रु का कभी विश्वास नहीं करे l ऐसा शत्रु जो हमें धोखा दे चुका हो , उस पर कभी विश्वास नहीं करे , उसे अपने घर में घुसने न दे , अन्यथा वह कभी भी उचित अवसर पाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करेगा l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वाङ्मय ' मरकर भी जो अमर हो गए ' में लिखा है ----- लोभी और दुष्ट -- इन दो के लिए संसार में कोई भी घात अकरणीय नहीं होती l साहसी शत्रु की अपेक्षा कायर शत्रु से अधिक सतर्क और सावधान रहने की नीति का निर्देश दिया गया है l '
जोधपुर के महाराज जसवंतसिंह ने औरंगजेब का हर तरह से साथ दिया , अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से उसे निर्भय रखा लेकिन औरंगजेब मन ही मन उनसे ईर्ष्या रखता था , उनकी वीरता , उनका प्रखर व्यक्तित्व उससे सहन नहीं होता था l कहते हैं -- कायर की जब वीर से विसाती नहीं तो वह कुटिलता पर उतर आता है l ' कुटिल औरंगजेब ने उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को धोखे से मर वा दिया और जोधपुर पर अपना अधिकार कर लिया l
आचार्य श्री ने लिखा है ---- ' वीर और बर्बर के आदर्शों में अन्तर होता है l हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए l
जोधपुर के महाराज जसवंतसिंह ने औरंगजेब का हर तरह से साथ दिया , अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से उसे निर्भय रखा लेकिन औरंगजेब मन ही मन उनसे ईर्ष्या रखता था , उनकी वीरता , उनका प्रखर व्यक्तित्व उससे सहन नहीं होता था l कहते हैं -- कायर की जब वीर से विसाती नहीं तो वह कुटिलता पर उतर आता है l ' कुटिल औरंगजेब ने उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को धोखे से मर वा दिया और जोधपुर पर अपना अधिकार कर लिया l
आचार्य श्री ने लिखा है ---- ' वीर और बर्बर के आदर्शों में अन्तर होता है l हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए l
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