जब बाबर ने अमीनाबाद को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया तो गुरु नानक और उनके शिष्य मरदाना को भी जेल की हवा खानी पड़ी l जब बाबर को अपने अधिकारियों से गुरु नानक की आध्यात्मिक शक्ति का पता चला तो वह उनसे जेल में मिलने गया l
नानक ने बादशाह को देखकर कहा --- " मनुष्य का धर्म तो लोगों की सेवा करना है , और आप अपने राज्य की प्रजा पर शासन कर रहे हैं l " बाबर ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहा --- " बाबा ! यदि आप कुछ मांगना चाहते हों तो नि:संकोच मांग लीजिए l "
गुरु नानक ने कहा --- " राजा से तो मूर्ख मनुष्य ही मांगते हैं l मुझे यदि किसी वस्तु की आवश्यकता भी होगी तो ईश्वर से मांगूंगा l आपसे मांगने का लाभ भी क्या है ? देने वाला तो दाता एक राम है , जो मनुष्यों को तो क्या राजाओं तक को देता है l "
इतना सुनकर बाबर ने कहा --- " तो आप ही मुझे कुछ प्रदान कीजिए l "
नानक ने एक उपदेश दिया ---- " बाबर ! इस संसार में किसी भी वस्तु का स्थायित्व नहीं है l ध्यान रखो ! आपका या आपके पुत्रों का शासन तब तक चलेगा जब तक उसका आधार प्रेम और न्याय बना रहेगा l " इस उपदेश से बाबर के जीवन की दिशा बदल गई l
नानक ने बादशाह को देखकर कहा --- " मनुष्य का धर्म तो लोगों की सेवा करना है , और आप अपने राज्य की प्रजा पर शासन कर रहे हैं l " बाबर ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहा --- " बाबा ! यदि आप कुछ मांगना चाहते हों तो नि:संकोच मांग लीजिए l "
गुरु नानक ने कहा --- " राजा से तो मूर्ख मनुष्य ही मांगते हैं l मुझे यदि किसी वस्तु की आवश्यकता भी होगी तो ईश्वर से मांगूंगा l आपसे मांगने का लाभ भी क्या है ? देने वाला तो दाता एक राम है , जो मनुष्यों को तो क्या राजाओं तक को देता है l "
इतना सुनकर बाबर ने कहा --- " तो आप ही मुझे कुछ प्रदान कीजिए l "
नानक ने एक उपदेश दिया ---- " बाबर ! इस संसार में किसी भी वस्तु का स्थायित्व नहीं है l ध्यान रखो ! आपका या आपके पुत्रों का शासन तब तक चलेगा जब तक उसका आधार प्रेम और न्याय बना रहेगा l " इस उपदेश से बाबर के जीवन की दिशा बदल गई l
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