पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वाङ्मय ' मरकर भी अमर हो गए जो ' में लिखा है ---- " आत्मघात तो एक पाप है ही , साथ ही अन्य प्रकार से भी जीवन का विनाश करना एक अपराध है ---- जो मनुष्य अज्ञानवश विषय - वासनाओं और भोग - विलास में पढ़कर इस मानव जीवन का दुरूपयोग करते हैं और लोभ , मोह , क्रोध व अहंकार में पढ़कर ऐसे काम किया करते हैं , जिससे अन्य मनुष्यों व प्राणियों को कष्ट होता है , तो ऐसा कर के वे अपने मानव जीवन का विनाश करते हैं l
लोभ के वशीभूत होकर प्राय: लोग अपनी शारीरिक , बौद्धिक तथा व्यावहारिक शक्तियों का दुरूपयोग कर धन - सम्पति का संचय करते हैं l इसके लिए वे शोषण , छल - कपट का सहारा लेते हैं और चोरी , डकैती , भ्रष्टाचार आदि न जाने कितने घृणित कर्म करते हैं l उनके इन लोभ प्रेरित कार्यों से कितने लोगों को कष्ट , हानि और भयंकर शोक सहन करना पड़ता है l ऐसे दुष्परिणाम देने वाले कार्यों को करना जीवन का दुरूपयोग और उसको नष्ट करना है l
इसी प्रकार लोग मोह में पड़कर और अहंकार के वशीभूत होकर अधर्म के पथ पर चलने लगते हैं l अपने स्वार्थ में लिप्त रहते हैं , समाज , राष्ट्र अथवा संसार के प्रति भी उनका कुछ कर्तव्य है , इसे भूल जाते हैं और अपने स्वार्थों में व्यवधान पड़ने पर अपराधों में प्रवृत हो जाते हैं l इस प्रकार का जीवन चलना उसे नष्ट करना ही है l '
लोभ के वशीभूत होकर प्राय: लोग अपनी शारीरिक , बौद्धिक तथा व्यावहारिक शक्तियों का दुरूपयोग कर धन - सम्पति का संचय करते हैं l इसके लिए वे शोषण , छल - कपट का सहारा लेते हैं और चोरी , डकैती , भ्रष्टाचार आदि न जाने कितने घृणित कर्म करते हैं l उनके इन लोभ प्रेरित कार्यों से कितने लोगों को कष्ट , हानि और भयंकर शोक सहन करना पड़ता है l ऐसे दुष्परिणाम देने वाले कार्यों को करना जीवन का दुरूपयोग और उसको नष्ट करना है l
इसी प्रकार लोग मोह में पड़कर और अहंकार के वशीभूत होकर अधर्म के पथ पर चलने लगते हैं l अपने स्वार्थ में लिप्त रहते हैं , समाज , राष्ट्र अथवा संसार के प्रति भी उनका कुछ कर्तव्य है , इसे भूल जाते हैं और अपने स्वार्थों में व्यवधान पड़ने पर अपराधों में प्रवृत हो जाते हैं l इस प्रकार का जीवन चलना उसे नष्ट करना ही है l '
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