22 February 2025

WISDOM -----

  प्रकृति  को  हम  जड़  समझते  हैं  ,  इस  अर्थ  में  कि   उनमें   कोई  भाव  नहीं  है   l  पुराण  की  कथाएं  बताती  हैं  कि   नदियाँ , समुद्र , पेड़ -पौधे  सब   जीवंत  हैं  ,  मनुष्यों  जैसी  भावना  उनमें  भी  है  l  कहते  हैं  एक  बार  पार्वती  जी  समुद्र  में  स्नान  करने  की  इच्छा  से  गईं  l  उनके  दिव्य  सौन्दर्य  को  देखकर   समुद्र  ने  उनसे  कहा  ---  तुम  कहाँ  गले  में  सर्पों  की  माला  लटकाए , भभूत  रमाए  ,  शमशान वासी  के  साथ  हो  !  मेरे  साथ  रहो , मेरे  पास  तो  चौदह  रत्न  हैं  ,  सुख -वैभव  से  रहो  ! "  यह  सुनकर  पार्वती जी  शीघ्रता  से  लौट  गईं  और  शिवजी  के  पास  आकर  रोने  लगीं  ,    उनसे    समुद्र  की  शिकायत  की  l  यह  सब  सुनकर  शिवजी  को  बहुत  क्रोध  आया  l  उन्होंने  विष्णु  जी  से   सब  बात  कही  और  समुद्र  के  अहंकार   को  समाप्त  करने  के  लिए  कहा   कि  इसे  अपने  चौदह  रत्नों  का  बड़ा  घमंड  है  l   तब   शिवजी  और  विष्णु जी  ने  मिलकर  समुद्र  मंथन  की  योजना  बनाई  l  यह  बहुत  विशाल  योजना  थी  , समुद्र  के  भीतर  से  चौदह  रत्न   निकाल  लिए   l  इस  प्रक्रिया  में   जब  समुद्र  मंथन  में  लक्ष्मी जी  निकलीं  तो  उन्होंने  विष्णु जी  का   वरण  किया   और  जब  हलाहल  विष  निकला   तो  संसार  के  कल्याण  के  लिए  शिवजी  ने  विषपान  किया  l इसकी  बड़ी  कथा  है  ,  यह  विष  शिवजी  के  कंठ  में  ही  रहा  और  वे  नीलकंठ   महादेव  कहलाए  l  पार्वतीजी  के  आंसू  साधारण  नहीं  थे  ,  समुद्र  का  अहंकार  समाप्त  करने  के  लिए  उन्होंने  विष  को  भी  कंठ  में  धारण  किया  l  इसलिए  कहते  हैं  कन्याएं  शिवजी  की  पूजा  करती  हैं  कि  उन्हें    शिवजी  जैसा  पति  और  सुखी  जीवन  मिले  l