पं . श्रीराम शर्मा जी के विचार हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं ---- " हमारे मार्गदर्शन के लिए , दिशाबोध के लिए , परेशानियों व कठिनाइयों को सहने के लिए जीवन में कोई न कोई तो होना चाहिए l यह स्थान यदि भगवान का स्थान हो तो मनुष्य आसानी से कठिन और जटिल परिस्थितियों से लड़ना सीख जाता है l ईश्वर से --- माँ , पिता , भाई , मित्र , बाबा , बालक ---किसी भी रूप में रिश्ता रखा जा सकता है l श्रद्धा और विश्वास से जब हम उन्हें पुकारेंगे तो अपनी अंतरात्मा से , या कहीं न कहीं से हमें अपनी समस्या का समाधान , सकारात्मक नजरिया अवश्य मिल जाता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " विपदाएं तो हर किसी के जीवन में आती हैं , यदि इन विपदाओं में हम अकेले होते हैं , तो यही विपदाएं हमारे लिए समस्या बन जाती हैं , हमारा जीवन तहस -नहस कर देती हैं , हम से हमारा बहुत कुछ छीन लेती हैं l परन्तु यदि इन विपदाओं में भगवान के प्रति समर्पण का भाव हमारे साथ है , तो ये विपदाएं हमारे लिए वरदान बन जाती हैं l भगवान का हमारे साथ होना एक ऐसा विश्वास है , जो हमें कठिन पलों में जबरदस्त संबल देता है , सकारात्मकता से जोड़ता है , जीवन को आशा भरी नजरों से देखने और इन जटिल पलों में भी बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है l जीवन का बहुत कुछ दांव पर लगे होने पर भी भगवान के साथ होने का भाव का होना , ऐसा मानसिक एहसास देता है कि भले ही जीवन में बहुत कुछ गंवाया जा रहा है , लेकिन फिर भी बहुत कुछ हमारे पास है , जो बेशकीमती है l " आचार्य श्री के इन कथन के एक -एक शब्द की सत्यता केवल वही अनुभव कर सकता है जिसे ईश्वर पर अटूट श्रद्धा और विश्वास हो और जो ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलने के लिए प्रयत्नशील हो l