प्रत्येक मनुष्य सुख -सुविधाओं में जीना चाहता है l सच्ची मेहनत और ईमानदारी से सब काम तो आसानी से चल जाता है लेकिन वह भोग , विलासिता संभव नहीं है l संसार में हर युग में ऐसे लोग रहे हैं जो भोग -विलासिता का जीवन जीने के लिए अपने से ताकतवर की , सत्ता की , धन-वैभव संपन्न लोगों की खुशामद में लगे रहते हैं और जिसकी वे चापलूसी करते हैं उसकी हर बात में हाँ -में -हाँ मिलाते है , वह कितनी बड़ी गलती करे , कभी उसका विरोध नहीं करते l अधिकाधिक सुख -भोग की चाहत रखने वालों और अपनी रोजी -रोटी चलती रहे , ऐसी सोच रखने वालों की संख्या बहुत है , इसी कारण अत्याचारी , अन्यायी और अहंकारी को पोषण मिलता है और उनके ऐसे दुर्गुणों का परिणाम संसार को भोगना पड़ता है l विशेष रूप से भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे जो आँख बंद कर के शासक की हर गलत बात को स्वीकार करते हैं , वे ही महाभारत को जन्म देते हैं l महाभारत काल में केवल महात्मा विदुर ही ऐसे थे जो दुर्योधन का अन्न नहीं खाते थे , वन के शाक -पात खाकर स्वाभिमान से जीवन व्यतीत करते थे l वे हमेशा निडरता से धृतराष्ट्र को सही सलाह देते थे , लेकिन पुत्र -मोह के कारण धृतराष्ट्र उसे अनसुना कर देते थे , इसका परिणाम महाभारत का महायुद्ध हुआ l