12 February 2025

WISDOM ------

 कहते  हैं  संस्कार  बहुत  प्रबल  होते  हैं  ,  संस्कारों  का  परिवर्तन  बहुत  कठिन  है  l  माता -पिता  के   और   उनसे  पूर्व  की  पीढ़ियों  के  गुण -दोष  ही  संस्कारों  के  रूप  में  संतानों  में  आते  हैं  l  यहाँ  तक  कि  निकटतम  रिश्तों  के  गुण -अवगुण  भी  खानदान  की   आने  वाली   पीढ़ियों   में  संस्कार रूप  में  आते  हैं  l  कई  लोग  ऐसे  भी  होते  हैं  जो  सारी  जिन्दगी  एक  मुखौटा  पहने  रहते  हैं  ,  उनके  भीतर  की  असलियत  कोई  जान  ही  नहीं  पाता  ,  उनका  पूरा  जीवन  इसी  मुखौटे  में  गुजर  जाता  है   लेकिन  उनके  भीतर  ,  मन  से  भी  अधिक  गहराई  में   जो  अवगुण  , जो  बुराई  उनमें  होती  है  ,  वह  उनकी  संतान  के  माध्यम  से  प्रकट  होती  है ,  बच्चे  अपने  माता -पिता  का  ही  प्रतिरूप  होते  हैं  l  अर्जुन  के  अभिमन्यु  जैसा  पुत्र  तो  संभव  है   लेकिन  हिरन्यकश्यप  के  प्रह्लाद  जैसा  श्रेष्ठ  पुत्र रत्न  हो ,   यह  अपवाद  है  l  प्रह्लाद  की  माता  कयाधू  ईश्वर  भक्त  थी   और  गर्भावस्था   की  सम्पूर्ण  अवधि  में   वे  ईश्वर  के  परम  भक्त  नारद जी  के  संरक्षण  में  रही  थीं  l   दुनिया -दिखावे  के  लिए  तो  सभी  चाहते  हैं  कि  समाज  मर्यादित  हो  ,  नैतिक  मूल्य  हों  ,  सबका  यथा -योग्य  सम्मान  हो  ,  लेकिन   स्वयं  को  सुधारना  कोई  नहीं  चाहता  l   यदि  समाज  में  नैतिक  मूल्यों   को  स्थापित  करना  है  और  एक  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  करना  है    तो   युवाओं   के  जीवन  को  तो  सही  दिशा  में  चलना  ही  चाहिए  क्योंकि  देश  का  भविष्य  उन्ही  के  हाथों  में  है  लेकिन  उन्हें  दिशा  देने  वाले  प्रौढ़  , बुजुर्ग   और  जीवन  के  आखिरी  मोड़  पर  बैठे  व्यक्तियों  को  भी   अपने  बीते  हुए  जीवन  का  एक  बार  अवलोकन  अवश्य  करना  चाहिए   कि   अपनी  संतानों  के  लिए   वे  धन -वैभव  के  अतिरिक्त   नैतिक  और  मानवीय  मूल्यों   की  ,  उनके  जीवन  को  सही  राह  देने  वाली  कौन  सी  विरासत  छोड़कर  जा  रहे  हैं  l  अश्लील  फ़िल्में  ,  निम्न  स्तर  का  साहित्य   और  धन  की  चकाचौंध  ने  विचारों  को  प्रदूषित  कर  दिया  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ---- 'चिन्तन  क्षेत्र  बंजर  हो  जाने  के  कारण  कार्य  भी  नागफनी  और  बबूल  जैसे  हो  रहे  हैं  l  

WISDOM ------

   दो  मित्र    राम  और   श्याम   जंगल  में  सैर  कर  रहे  थे  l  अचानक  ही  उन्होंने  देखा  कि  एक  भालू  बड़ी  तेजी  से उनकी  ओर  आ  रहा  है  l    राम  पेड़  पर  चढ़ना  जानता  था  इसलिए  वह  शीघ्रता  से  पेड़  पर  चढ़  गया  l   श्याम  पेड़  पर  चढ़ना  नहीं  जानता  था  इसलिए  उसने  राम  से  कहा  कि  तुम  मुझे  थोडा  सहारा  दो  जिससे  मैं  भी  पेड़  की  डाल  पकड़  कर  ऊपर  चढ़  जाऊं  l  राम  ने  सोचा  कि  कहीं  ऐसा  न  हो  कि  श्याम  को  ऊपर  चढ़ाने  में  देर  हो  जाए  और  जब  तक  भालू आकर  उसका  काम -तमाम  कर  दे  l   राम  ने  श्याम  की  बात  को  अनसुना  कर दिया  और  पेड़  पर  पत्तों  की  आड़  में  छुपकर  बैठा  रहा  l  श्याम  ने  बुद्धिमत्ता  से  काम  लिया  और  पेड़  के  नीचे  सांस  रोककर  सीधा  लेट  गया  l  भालू  आया  ,  उसने  श्याम  को  सूंघा  l  श्याम  ने  सांस  रोक  रखी  थी  ,  भालू  ने  समझा  कि  वह  मरा  पड़ा  है   इसलिए  वह  चुपचाप  लौट  गया  l  भालू  के  चले  जाने  पर  राम  नीचे  उतरा   और  हँसते  हुए  श्याम  से  बोला  --- "  भालू  तुम्हारे  कान  में  क्या  कह  रहा  था  ?  "  श्याम  ने  कहा  --- "  भालू  मेरे  कान  में  कह  रहा  था  ---ऐसे  मित्र  का  कभी  विश्वास  न  करो  ,  जो  संकट  के  समय  तुम्हारा  साथ  न  दे  ,  तुम्हे  मुसीबत  में  छोड़  कर  चला  जाये  l "                                                                   कलियुग  में  कृष्ण  और  सुदामा   जैसी  और  दुर्योधन  व  कर्ण   जैसी  मित्रता  असंभव  है  l  यहाँ  तो  सब  स्वार्थ  से  जुड़े  हैं  l  इसलिए  कहते  हैं  मित्रता  और  रिश्ता  बराबर  वालों  में  होना  चाहिए  l  यदि  मित्र  बहुत  अमीर  और  शक्तिशाली  है  तो  वह  आपको  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  करेगा  और   जब  स्वार्थ  पूरा  हो  जायेगा  या  स्वार्थ  पूरा  होने  की  कोई  संभावना  नहीं  होगी  तो  वह  दूध  की  मक्खी  की  तरह  बाहर   निकाल  देगा   l   इस  युग  में  संवेदनाएं  कहीं  भी  नहीं  है  ,  सब  जगह  व्यापार  है  ' यूज़  एंड   थ्रो '   केवल  वस्तुओं  में  ही  नहीं  है  ,  मानवीय  संबंधों  में  भी  है  l  किसी  विद्वान  ने  सत्य  कहा  है  ---- ' प्रेम  सबसे  करो ,  लेकिन  विश्वास  किसी  पर  भी  न  करो  l '