पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' बगुला उस आकार की मछली पकड़ता है जो उसकी चोंच में समा सके और गले के नीचे उतर सके , जो इससे बड़ी होती है उसे वह नहीं छेड़ता l समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे ही होते हैं जो हर समय शिकार ढूंढते हैं और घात लगाते हैं l अपने से कमजोर पड़ने वाले पर हमला बोलते हैं l सीधे आक्रमण महंगा पड़ता दीखे तो छल - छद्म की कुटिलता बरतते हैं l विरोधियों को आपस में लड़ा कर कमजोर करते हैं फिर दोनों को ही एक - एक कर के निगल जाते हैं l चोर - चोर आपस में लड़ते नहीं ,, वरन मतलब की दोस्ती गांठते हैं और मौसेरे भाई बन जाते हैं , अनाचारों में एक दूसरे का सहयोग देते और लाभ में हिस्सा बंटाते हैं l शिकार ढूंढते समय वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि दुर्बल या सज्जन पर ही हमला बोला जाये l " आचार्य श्री कहते हैं ये दोनों ही प्रतिरोध नहीं करते इसलिए उनके आक्रमण का शिकार होते हैं l अनेक मित्र संबंधी उनकी मंडली में होते हैं , इन्हे नर पिशाच कहते हैं l
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