महाभारत का युद्ध चल रहा था l द्रोणाचार्य और अर्जुन आमने - सामने थे l द्रोणाचार्य ने अर्जुन को धनुर्विद्द्या सिखाई थी , उसके बावजूद वे उसके सामने असहाय दिख रहे थे l कौरवों ने प्रश्न किया ---- " आश्चर्य की बात है कि गुरु हार रहे हैं और शिष्य जीत रहा है l " द्रोणाचार्य बोले ---- " मुझे राजाश्रय की सुख - सुविधा भोगते हुए वर्षों गुजर गए , जबकि अर्जुन इतने ही समय तक कठिनाइयों से जूझता रहा है l सुविधासम्पन्न अपनी सामर्थ्य गँवा बैठते हैं और संघर्ष शील निरंतर शक्तिसम्पन्न बनते रहते हैं l " महर्षि अरविन्द ने कहा है ---- " दुःख भगवान के हाथ का हथौड़ा है , उसी के माध्यम से मनुष्य का जीवन सँवरता है l " पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " जीवन में दुःख , कठिनाइयाँ हमें कुछ सिखाने आती हैं , हम उसे चुनौती मानकर उसका सकारात्मक ढंग से सामना करें l रो कर , विलाप कर उस समय को न गुजारें , दुःख को तप बना लें l यदि जीवन में सुख का समय आता है तो उसे ईश्वर की देन मानकर निरंतर निष्काम कर्म करें , उसे आलस - प्रमाद , भोग - विलास में न गंवाएं l "
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