18 February 2022

WISDOM------

 भगवान  महावीर  एक  गांव  से  गुजर  रहे  थे  , तो  एक  जिज्ञासु  ने  प्रश्न  किया  ---- " महाराज  ! साधु  और  असाधु   में  क्या  अंतर्  है  ?  साधु  कौन  ?  और  असाधु  कौन  ?  क्या  हमारे  जैसे  गृहस्थ  भी   साधु  की  संज्ञा  पा  सकते  हैं  ? "  भगवान  महावीर  ने  जवाब  दिया ---- " जिसने  स्वयं  को  साध  लिया  ,  वास्तविक  साधु  वही  है  l  असाधु  तो  वह  है   जो  केश  और  वेश  से   साधु  बनने  का  प्रपंच  रचता  है  l  यदि  तुमने  अपने  आप  को  साध  लिया  और  सुधार  लिया  ,  तो  निश्चय  ही  तुम   गृहस्थ  होते  हुए  भी  साधु  हो   l  "              आज  संसार  में    अशांति  है ,  सुविधाएँ  बहुत    हैं  लेकिन   सुख नहीं  है  , लोग  तनाव  में  हैं  l    इसका  कारण  यही  है   कि  आज  संसार  में  शराफत  का  नकाब  पहन  कर  चलने  वालों  की  संख्या  बहुत  अधिक  है  ,  इसकी  आड़  में  लोग   अनैतिक और  अमर्यादित  काम  करते  हैं  ,  दूसरों  को  भी  तनाव  देते  हैं   और  स्वयं  भी  तनाव  और  अशांति  का  जीवन  जीते  हैं  l  बाहरी  चमक - धमक   सुख  का  पैमाना  नहीं  है ,  दो  नावों   पर पांव  रखकर  चलना ---- संतुलन  संभव  नहीं  है  l   संसार  में  अच्छे  और  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले  भी  बहुत  हैं   लेकिन   नकारात्मकता  इतनी  प्रबल  है  कि   वो  अच्छाई  को    आगे  नहीं  आने  देती  l   जन्म  से  कोई  बुरा  नहीं  होता ,  अपनी  मानसिक  कमजोरियों  के  वशीभूत  होकर  व्यक्ति  गलत  राह  पकड़  लेता  है   और  फिर  उसमें  उलझता  जाता  है  l    इस  समस्या  का  समाधान  पं. श्रीराम  शर्मा  जी  ने  बताया  है ----- ' अपनी  गलती  को  मान  लेना ,  दोषों  को  न   छिपाना ,  अज्ञानवश  हुई   गलती   का सुधार  कर  लेना  ,  अपने  जीवन  की  खुली  तस्वीर  रखना  ,  ताकि  सब  उसको  देख  व  परख  सकें  ,    यही  जीवन  का   विकास  करने   और  आनंद  प्राप्त  करने  की   उत्तम  कसौटी  है   l " 

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