भगवान महावीर एक गांव से गुजर रहे थे , तो एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया ---- " महाराज ! साधु और असाधु में क्या अंतर् है ? साधु कौन ? और असाधु कौन ? क्या हमारे जैसे गृहस्थ भी साधु की संज्ञा पा सकते हैं ? " भगवान महावीर ने जवाब दिया ---- " जिसने स्वयं को साध लिया , वास्तविक साधु वही है l असाधु तो वह है जो केश और वेश से साधु बनने का प्रपंच रचता है l यदि तुमने अपने आप को साध लिया और सुधार लिया , तो निश्चय ही तुम गृहस्थ होते हुए भी साधु हो l " आज संसार में अशांति है , सुविधाएँ बहुत हैं लेकिन सुख नहीं है , लोग तनाव में हैं l इसका कारण यही है कि आज संसार में शराफत का नकाब पहन कर चलने वालों की संख्या बहुत अधिक है , इसकी आड़ में लोग अनैतिक और अमर्यादित काम करते हैं , दूसरों को भी तनाव देते हैं और स्वयं भी तनाव और अशांति का जीवन जीते हैं l बाहरी चमक - धमक सुख का पैमाना नहीं है , दो नावों पर पांव रखकर चलना ---- संतुलन संभव नहीं है l संसार में अच्छे और सन्मार्ग पर चलने वाले भी बहुत हैं लेकिन नकारात्मकता इतनी प्रबल है कि वो अच्छाई को आगे नहीं आने देती l जन्म से कोई बुरा नहीं होता , अपनी मानसिक कमजोरियों के वशीभूत होकर व्यक्ति गलत राह पकड़ लेता है और फिर उसमें उलझता जाता है l इस समस्या का समाधान पं. श्रीराम शर्मा जी ने बताया है ----- ' अपनी गलती को मान लेना , दोषों को न छिपाना , अज्ञानवश हुई गलती का सुधार कर लेना , अपने जीवन की खुली तस्वीर रखना , ताकि सब उसको देख व परख सकें , यही जीवन का विकास करने और आनंद प्राप्त करने की उत्तम कसौटी है l "
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