' जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है l ' यह मनुष्य की दुर्बुद्धि है कि वह वैज्ञानिक प्रगति तो करता है लेकिन उसमे सृजन के तत्वों को भूलकर केवल विनाश के पक्ष पर अपना ध्यान केंद्रित कर लेता है l जिन साधनों से सारा संसार जगमगा सकता है , उन्हें वह अंधकार में डुबो देना चाहता है और केवल इसलिए कि वह लाशों पर राज कर सके l असुरता में अहंकार है , उसका पोषण जरुरी है , अन्यथा वह घाव बनकर रिसने लगता है l लाशें कभी विद्रोह नहीं करतीं , कोई जुलूस , कोई आंदोलन नहीं करतीं l किसी भी तकनीक से उन्हें खड़ा कर के ' सलाम ' कराया जा सकता है l इसी से अहंकारी को सुकून मिल जाता है l यह दुर्बुद्धि ही है कि असुरता स्वयं को अमर समझकर दूसरों के विनाश के लिए हर संभव कार्य करती है l केवल कुछ लोगों के अहंकार के कारण समूची मानव जाति , प्रकृति , पर्यावरण सब पर संकट आ जाता है l इन सब के लिए संसार में जो भी प्रयास किए गए , वे सब एक नाटक सा लगने लगते हैं l
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