10 October 2022

WISDOM ---

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----' देवता  यदि  कहीं  हैं , तो  हमारे  ही  अन्दर  सत्प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं   l  और  असुर  हैं , तो  वे  भी  हमारे  अन्दर  पाशविक  प्रवृत्तियों  के  रूप  में  हैं  l  जो  विवेकशील  हैं,  वे  विलास  उपभोग  के  मायाजाल  में  न  पड़कर   पाशविक  प्रवृत्तियों  को  स्वयं  पर  हावी  नहीं  होने  देते  l '  देवराज  इंद्र  को  असुरों  से  अनेक  बार  परस्त  होना  पड़ा  l  भगवान  की  विशेष  सहायता  से  ही   बड़ी  कठिनाई  के  साथ  अपना  इन्द्रासन  लौटाने  में  सफल  हो  सके  l  एक  दिन  इस  बार -बार  की  पराजय  का  कारण  प्रजापति  से  पूछा  ,  तो  उन्होंने  कहा --- ऐश्वर्य  की  रक्षा  संयम  से  होती  है  l  जो  वैभव  पाकर  प्रमाद  में  फंस  जाते  हैं  , उन्हें    पराभव  का  मुँह  देखना  पड़ता  है  l   एक  कथा  है ------- दो  संत  तीर्थ  यात्रा  पर  जा  रहे  थे  l  एक  विशालकाय  वृक्ष  के  नीचे  उन्होंने  आश्रय  लिया   और  आगे   बढ़े  l  यात्रा  से  जब   अगले  वर्ष  वापस  लौटे   तो  उन्होंने  देखा  कि  जिस  सघन  वृक्ष  की  छाया  में   उन्होंने  भोजन  किया  था  , विश्राम  किया  था , वह  गिरा  पड़ा  है  l   पहले  संत  ने  अपने  वरिष्ठ  संत  से  पूछा  --- " महात्मन  !  यह  कैसे  हुआ  ?  इतनी  अल्प  अवधि  में  यह  वृक्ष  कैसे  गिर  गया  ? "  संत  बोले --- " तात  !  यह  वृक्ष  छिद्रों  के  कारण  गिरा  है  l  प्राण  था --- इसका  जीवन  रस ,  जो   गोंद  रूप  में  सतत  बहता  रहा  l  उसे  पाने  की  लालसा  में  मनुष्य  ने  उसमें  छेद  कर   उसे  खोखला  बना  दिया  l  खोखली  वस्तु  कभी  खड़ी  नहीं  रह  सकती  l  झंझावातों  को  सहन  न  कर  पाने   के  कारण  ही  इसकी  यह  गति  हुई  है  l  '

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