पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " जीवन का एक -एक क्षण बहुमूल्य है , पर लोग उसे वासना और तृष्णाओं के बदले कौड़ी मोल गँवाते हैं l बहुत गँवाकर भी अंत में यदि कोई कोई मनुष्य संभल जाता है , तो वह भी बुद्धिमान ही माना जाता है l " एक कथा है ----- एक राजा वन भ्रमण को गया l रास्ता भूल जाने पर भूख -प्यास से पीड़ित वह एक वनवासी की झोंपड़ी पर पहुंचा l वनवासी के पास जो भी रुखा - सूखा भोजन था और कंदमूल , फल , ठंडा पानी आदि से उन्कुंका स्वागत किया l राजा बहुत तृप्त हो गया l चलते समय उसने कहा -- हम इस राज्य के शासक हैं , तुमने समय पर जो हमारा आतिथ्य किया उससे हम बहत प्रसन्न हैं और यह एक बाग तुम्हे देते हैं , तुम्हारा शेष जीवन आनंद से बीतेगा l वह वनवासी जंगल से लकड़ी काटकर उनका कोयला बनाकर बेचता था l अब उसे बाग मिल गया तो वह उसके पेड़ों की लकड़ी काटकर , सुखाकर कोयला बनाकर बेचने लगा l उसका जीवन यापन होने लगा l धीरे -धीरे सब वृक्ष समाप्त हो गए , केवल एक वृक्ष बचा l कई दिनों तक वर्षा होने के कारण वह कोयला नहीं बना सका l उसने उस वृक्ष की लकड़ी ही बेचने का निश्चय किया l लकड़ी का गट्ठा लेकर जब वह बाजार में पहुंचा तो उन लकड़ियों की सुगंध से प्रभावित होकर लोगों ने उसका भारी मूल्य चुकाया l आश्चर्य चकित वनवासी ने इसका कारण पूछा तो लोगों ने कहा --यह चन्दन की लकड़ी है , बहुत मूल्यवान है l यदि तुम्हारे पास ऐसी ही और लकड़ी हो तो उसका प्रचुर मूल्य प्राप्त कर सकते हो l वनवासी अपनी नासमझी पर पश्चाताप करने लगा कि उसने इतना बहुमूल्य चन्दन वन कौड़ी मोल कोयला बनाकर बेच दिया l पछताते हुए नासमझ को सांत्वना देते हुए एक विचारशील व्यक्ति ने कहा --- यह सारी दुनिया तुम्हारी ही तरह नासमझ है , इस अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ गँवा देती है l तुम्हारे पास जो एक वृक्ष बचा है , अब उसी का सदुपयोग कर लो l जब जागो , तब सवेरा l
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