' यदि हम कुछ सीखना चाहें तो प्रकृति के हर कण से कुछ -न -कुछ सीख सकते हैं , बस ! सीखने की चाहत होनी चाहिए l ' एक कथा है ---- पुराने समय की बात है जब कबूतर झाड़ियों में अंडा देते थे l उनके अंडे दूसरे प्राणी आकर खा जाया करते थे l कबूतरों ने चिड़ियों से इसका समाधान पूछा तो चिड़ियों के राजा ने उन्हें पेड़ की डाल पर घोंसला बनाने की सलाह दी l कबूतरों ने वहां घोंसला बनाने का प्रयत्न किया , परन्तु वह ढंग से नहीं बन पाया तो उन्होंने चिड़ियों को सहायता हेतु बुलाया l सभी चिड़ियाँ मिलकर उन्हें व्यवस्थित घोंसला बनाना सिखा रही थीं कि कबूतर बोले --- " हाँ , हाँ , हमें ऐसा बनाना आता है , अब हम बना लेंगे l " चिड़ियाँ यह सुनकर चली गईं l कबूतरों ने फिर घोंसला बनाने की कोशिश की , परन्तु उनसे घोंसला नहीं बना l अनुनय - विनय करने पर चिड़ियाँ दोबारा आईं और उन्हें तिनका लगाना सिखाने लगीं l अभी आधा घोंसला बना था कि कबूतर उछलकर बोले ---- " ऐसा बनाना तो हम भी जानते हैं l " यह सुनकर चिड़ियाँ फिर चली गईं l कबूतरों ने फिर घोंसला बनाया , पर उनसे नहीं बना l कबूतरों ने फिर से चिड़ियों से प्रार्थना की , इस बार चिड़ियों ने उनको यह कहते हुए सिखाने से मना कर दिया --- " जो कुछ न जानते हुए भी यह मानते हैं कि हम सब जानते हैं , उन मूर्खों को कुछ नहीं सिखाया जा सकता l " तब से आज तक कबूतर अव्यवस्थित घोंसला ही बनाते हैं l
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