हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l महाभारत में प्रसंग है --- चक्रव्यूह l उस युग में वीरता का एक मापदंड यह था कि युद्ध के लिए कोई ललकारे , चुनौती दे तो उसे स्वीकार करना अनिवार्य था l उस दिन के युद्ध में अर्जुन को एक अन्य राजा ने ललकारा और जहाँ द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह रचा था , उस स्थान से काफी दूर युद्ध के लिए ले गए l अब शेष चारों पांडवों को चक्रव्यूह बेधना नहीं आता था तब अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने कहा , उसने यह विद्या माँ के गर्भ में सीखी है , उसे छह दरवाजे पार करना आता है , फिर आप सभी पांडव और सेना साथ होगी तो हम आज के युद्ध में विजय श्री प्राप्त होगी l इसकी पूरी कथा है कि सात महारथियों ने मिलकर सत्रह वर्षीय अभिमन्यु का वध कर दिया l यह प्रसंग हमें बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा देता है --- उस युग में जब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं इस धरती पर थे और अभिमन्यु उनकी बहन सुभद्रा और अर्जुन का पुत्र था , जब उसे सबने मिलकर युद्ध के नियमों के विपरीत छल से मारा तो फिर इस कलियुग की बात क्या कहें ? इस युग में जब मानसिक विकृतियाँ अपने चरम पर हैं तो यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि ---दुश्मन के और कुटिल व्यक्ति के खेमे में जाने का जोखिम न लो l यदि किसी से दुश्मनी रहने के बाद सुलह हो गई हो , मित्रता हो गई हो तब भी उसका विश्वास न करो क्योंकि बिच्छू अपना स्वाभाव नहीं बदलता है l इतिहास में ऐसे अनेकों प्रसंग है और अनेकों घटनाएँ हम वर्तमान में भी देखते -सुनते हैं कि मित्रता की आड़ में छल -कपट , धोखा मिलता है ,जीवन को भी खतरा रहता है l इतिहास की एक घटना है ---- ओरंगजेब ने जोधपुर के महाराज जसवंतसिंह से मित्रता की और उनके पराक्रम का जी भर कर लाभ उठाया l वह मन ही मन उनकी वीरता से डरता था और जोधपुर पर कब्ज़ा करना चाहता था l औरंगजेब ने महाराज जसवंतसिंह को निरंतर युद्धों में उलझाए रखा जिससे उनका शरीर जर्जर हो गया l काबुल के पठानों के साथ युद्ध में उनके दो पुत्र मारे गए l औरंगजेब बहुत कुटिल और लोभी था उसने उनके अंतिम पुत्र पृथ्वीसिंह को अजमेर का विद्रोह दबाने भेजा , उसने सोचा था की ये अनुभवहीन है , मारा जायेगा लेकिन पृथ्वी सिंह विजयी होकर लौटा l आचार्य श्री लिखते हैं --- दुष्ट की भलाई और अनाचारी का संग करने वाले का कल्याण नहीं होता l ' औरंगजेब ने विजय के उपलक्ष्य में खिल्लत देने के बहाने पृथ्वी सिंह को बुलाया और विष बुझे कपड़े पहनाकर आदर पूर्वक विदा किया l कुमार पृथ्वीसिंह दरबार से अपने निवास स्थान तक भी न जा सके , रास्ते में ही कपड़ों में लगे घातक विष ने अपना काम कर दिया और जसवंत सिंह का दीप्तिमान दीपक अस्त हो गया l ऐसे इतिहास में अनेकों प्रसंग हैं जहाँ हमने जिसका विश्वास किया , उन्ही ने धोखा दिया , छल किया l ऐसे प्रसंग ही हमें सिखाते हैं कि कलियुग में जब दुर्बुद्धि का प्रकोप है तो अपने सामान्य जीवन में भी ऐसे जोखिम न लें जहाँ अपने सम्मान और जीवन को खतरा हो l किसी विद्वान् ने कहा भी है ---प्रेम सब से करो , पर विश्वास किसी का न करो l
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