23 October 2022

WISDOM

     हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  महाभारत  में   प्रसंग  है --- चक्रव्यूह  l  उस  युग  में  वीरता  का  एक  मापदंड  यह  था  कि  युद्ध  के  लिए  कोई  ललकारे , चुनौती  दे  तो  उसे  स्वीकार करना  अनिवार्य  था  l  उस  दिन  के  युद्ध  में  अर्जुन  को  एक  अन्य  राजा  ने  ललकारा   और   जहाँ  द्रोणाचार्य  ने  चक्रव्यूह  रचा  था  , उस  स्थान  से  काफी  दूर  युद्ध  के  लिए  ले  गए  l  अब  शेष  चारों  पांडवों  को  चक्रव्यूह  बेधना  नहीं  आता  था  तब  अर्जुन  के  पुत्र  अभिमन्यु  ने  कहा  ,  उसने  यह  विद्या  माँ  के  गर्भ  में  सीखी  है  , उसे  छह  दरवाजे  पार  करना  आता  है   ,  फिर  आप  सभी  पांडव  और  सेना  साथ  होगी  तो   हम  आज  के  युद्ध  में  विजय  श्री  प्राप्त  होगी  l  इसकी  पूरी  कथा  है  कि   सात  महारथियों  ने  मिलकर   सत्रह  वर्षीय  अभिमन्यु  का  वध  कर  दिया  l  यह  प्रसंग  हमें  बहुत  महत्वपूर्ण  शिक्षा  देता  है  --- उस  युग  में  जब  भगवान  श्रीकृष्ण  स्वयं  इस  धरती  पर  थे  और  अभिमन्यु   उनकी  बहन  सुभद्रा और  अर्जुन  का  पुत्र  था  ,  जब  उसे  सबने  मिलकर  युद्ध  के  नियमों  के  विपरीत  छल  से  मारा  तो  फिर  इस  कलियुग  की  बात  क्या  कहें  ?  इस  युग  में   जब  मानसिक  विकृतियाँ  अपने  चरम  पर  हैं  तो  यह  प्रसंग  हमें  शिक्षा  देता  है  कि  ---दुश्मन  के   और  कुटिल   व्यक्ति  के   खेमे  में  जाने  का  जोखिम  न  लो  l  यदि  किसी  से  दुश्मनी  रहने  के  बाद  सुलह  हो  गई  हो  , मित्रता  हो  गई  हो  तब  भी  उसका  विश्वास  न  करो  क्योंकि  बिच्छू  अपना  स्वाभाव  नहीं  बदलता  है  l  इतिहास  में  ऐसे  अनेकों  प्रसंग  है   और  अनेकों  घटनाएँ  हम  वर्तमान  में  भी  देखते -सुनते  हैं  कि  मित्रता  की  आड़  में   छल -कपट , धोखा मिलता  है  ,जीवन  को  भी  खतरा  रहता  है  l  इतिहास  की  एक  घटना  है ---- ओरंगजेब  ने  जोधपुर  के  महाराज  जसवंतसिंह  से  मित्रता  की   और  उनके  पराक्रम  का  जी  भर  कर  लाभ  उठाया  l  वह  मन  ही  मन  उनकी  वीरता  से  डरता  था  और  जोधपुर  पर  कब्ज़ा  करना  चाहता  था  l  औरंगजेब  ने  महाराज  जसवंतसिंह  को  निरंतर  युद्धों  में  उलझाए  रखा  जिससे  उनका  शरीर  जर्जर  हो  गया  l  काबुल  के  पठानों  के  साथ  युद्ध  में  उनके  दो  पुत्र  मारे  गए  l  औरंगजेब  बहुत  कुटिल  और  लोभी  था  उसने  उनके  अंतिम  पुत्र  पृथ्वीसिंह  को  अजमेर  का  विद्रोह  दबाने  भेजा  , उसने  सोचा  था  की  ये  अनुभवहीन  है , मारा  जायेगा  लेकिन  पृथ्वी सिंह  विजयी  होकर  लौटा  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- दुष्ट  की  भलाई  और  अनाचारी  का  संग  करने  वाले  का  कल्याण  नहीं  होता  l '  औरंगजेब  ने  विजय  के  उपलक्ष्य  में  खिल्लत  देने  के  बहाने   पृथ्वी सिंह  को  बुलाया   और  विष बुझे  कपड़े  पहनाकर   आदर पूर्वक  विदा  किया   l  कुमार  पृथ्वीसिंह  दरबार  से  अपने  निवास  स्थान  तक  भी  न  जा  सके  , रास्ते  में  ही  कपड़ों  में  लगे  घातक  विष  ने  अपना  काम  कर  दिया   और  जसवंत सिंह  का  दीप्तिमान  दीपक  अस्त  हो  गया  l    ऐसे  इतिहास  में  अनेकों  प्रसंग  हैं   जहाँ  हमने  जिसका  विश्वास  किया  , उन्ही  ने  धोखा  दिया , छल  किया  l   ऐसे  प्रसंग  ही  हमें  सिखाते  हैं  कि  कलियुग  में  जब  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है   तो  अपने  सामान्य  जीवन  में  भी  ऐसे  जोखिम  न  लें  जहाँ  अपने  सम्मान  और  जीवन  को  खतरा  हो  l  किसी  विद्वान्  ने  कहा  भी  है ---प्रेम  सब से  करो  , पर  विश्वास  किसी  का  न  करो  l  

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