कबीरदास जी का दोहा है ---- धीरे -धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होय l माली सींचै सौ घड़ा , ऋतु आए फल होय l अर्थात माली किसी पौधे को सौ घड़े पानी से भी सींचे , पर उसमें फल तो समय आने पर ही होंगे l आचार्य श्री लिखते हैं --"- सत्कर्मों का बीज बोते ही हमें फल प्राप्ति नहीं हो सकती , समय आने पर ही हमें सत्कर्मों का फल मिलता है l इसलिए हमें कुशल किसान की तरह सत्कर्मों की खेती निरंतर करनी चाहिए l " एक कथा है ----- देव नामक एक लड़का बहुत गरीब था , जीविका और स्कूल की फीस भरने के लिए वह फेरी लगाता था l एक दिन वह दिन भर घूमा लेकिन उसका कोई सामान नहीं बिका l वह बहुत थक गया और उसे बहुत भूख भी लागी l बहुत व्याकुल था वह , कुछ खाना मांगने के लिए उसने एक घर का दरवाजा खटखटाया l एक लड़की बाहर आई l संकोचवश उसने खाना तो नहीं माँगा , एक गिलास पानी माँगा l उसे देखकर लड़की समझ गई कि वह बहुत भूखा है , वह एक बड़ा गिलास दूध भरकर ले आई l लड़के ने दूध पी लिया और इसके पैसे के लिए लिए पूछा l लड़की ने मना कर दिया कि हम इस तरह पैसे नहीं लेते l लड़का धन्यवाद देकर चला गया l वर्षों बीत गए l वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ी , स्थानीय चिकित्सक सफल नहीं हुए तो उसे शहर के बड़े अस्पताल भेज दिया l वहां विशेषज्ञ चिकित्सक को बुलाया गया , उन्होंने उस लड़की को देखा , रोग की जांच की , उनकी मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में वह पूर्ण स्वस्थ हो गई l उसने किसी सहायक से कहकर अस्पताल के कार्यालय से बिल बिल मंगवाया l बिल को देखकर लड़की को लगा कि वह बीमारी से तो बच गई लेकिन अब बिल कैसे भरेगी ? तभी उसकी द्रष्टि बिल के कोने पर लिखे एक सन्देश पर गई , वहां पर लिखा था ---- ' आपको भुगतान करने की कोई आवश्यकता नहीं l एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान वर्षों पहले किया जा चुका है l ' उसे याद आया कि वर्षों पहले उसने जिस बालक को एक गिलास दूध देकर उसकी सहायता की थी , उसी ने उसे संकट से बचाया है l हमें सत्कर्मों का सुफल अवश्य मिलता है चाहे वह संसार में कहीं से भी मिले l
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