हमारे महाकाव्य --रामायण और महाभारत -- केवल सुनने , सुनाने के लिए नहीं हैं , उनकी शिक्षाओं पर अमल करें , विभिन्न प्रसंगों से अपना विवेक जाग्रत करें तो सुख -शांति के द्वार खुल जाएँ l महाभारत का ये प्रसंग हमें राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाता है लेकिन महाभारत हुए युग बीत गए , हमने वह पाठ सीखा ही नहीं और आपसी फूट से सदियों की गुलामी और विदेशी आक्रमणों को झेला l कहते हैं जब जागो तब सवेरा ! बाहरी शक्तियां तो लाभ उठाने की तैयारी में रहती हैं l प्रसंग है ---- जुए में हार जाने के बाद पांडव वन में निष्कासित जीवन व्यतीत कर रहे थे l उन्हों दिनों की बात है एक यक्ष ने हस्तिनापुर पर आक्रमण कर दिया l जब तक सेना तैयार हो उसने दुर्योधन को छलपूर्वक पकड़ लिया और विमान द्वारा युवराज दुर्योधन को बंदी बनाकर अपने यक्षपुरी ले चला l विमान वहां से निकला जहाँ पांचों पांडव और द्रोपदी विश्राम कर रहे थे l विमान में द्वन्द युद्ध करते दुर्योधन को युधिष्ठिर ने पहचान लिया l उन्होंने अर्जुन को बुलाकर तुरंत आज्ञा दी कि --- जाओ और इस यक्ष से युद्ध कर भाई दुर्योधन को छुड़ा दो l इस पर भीम ने विरोध किया और उन्हें दुर्योधन द्वारा किए गए षड्यंत्रों और अत्याचारों की याद दिलाई l तब युधिष्ठिर ने कहा ---- नीति कहती है जब बाहरी आक्रमण हो तो आंतरिक द्वेष भूलकर परस्पर मदद करनी चाहिए l हम भाई -भाई का आपस में चाहे वैर है , लेकिन बाहरी आक्रमण के समय हम एक सौ पांच है l ' अर्जुन को भी बात समझ में आ गई और उसने यक्ष से युद्ध कर के दुर्योधन को छुड़ा लिया l दुर्योधन ने विनीत भाव से युधिष्ठिर से कहा --- आप इस उपकार के बदले क्या चाहते हैं ? ' युधिष्ठिर ने युवराज दुर्योधन को सम्मान दिया और कहा --अभी आप हस्तिनापुर लौट जाएँ , वहां आपके बिना सब चिंतित होंगे l '
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