18 October 2022

WISDOM---

   यमदूत  और  देवदूत  मृतकों  की  जीवन गाथा  पूछकर  उन्हें  स्वर्ग  और  नरक  में  ले  जाते  थे  l  एक  साधु  के  पास  वे  पहुंचे   तो  वे  बोले  ---- " मैं  भरी  जवानी  में  संन्यासी  हो  गया  l  यहाँ  तक  कि  छोटे -छोटे  बच्चे , पत्नी  तथा  माता  के   रोने -बिलखने  की  परवाह  नहीं  की  l  ऐसी  है  मेरी  भक्ति  l "  उस  साधु  को  यमदूतों  ने  नरक  पहुंचा  दिया  l   साधु  बड़ा  परेशान  हुआ  , तब  धर्मराज  ने  उसके  कर्मों  की  समीक्षा  करते  हुए  कहा ---- " कर्तव्यों  का  परित्याग  कर  के  कोई  भक्ति  नहीं  हो  सकती  l  "  वस्तुतः  कर्तव्य  सर्वोपरि  है  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- कर्तव्य  ही  धर्म  है  l  भगवद भक्ति  उसी  का  एक  अंग  है  l  

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