पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' मनुष्य जीवन के विकार , कष्ट और यंत्रणा ईश्वर प्रदत्त नहीं हैं , ये उसकी निजी भूलें और पाप होते हैं l परमात्मा तो उन्हें दूर करने में सहायता करते हैं l आत्मा को शुद्ध और सुघड़ बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं l ' मनुष्य के शरीर में कोई भयंकर बीमारी हो , कोई कष्ट हो तो कैसे तप की शक्ति से उसे दूर किया जा सकता है ---- यही समझाने के लिए पुराण की एक कथा है ----- महर्षि अत्रि के घर पुत्री का जन्म हुआ , इसे पाकर वे बहुत प्रसन्न थे , उसका नाम रखा ---अपाला ---l अपाला जैसे -जैसे बड़ी होती गई , उसकी त्वचा पर श्वेत धब्बे देखकर महर्षि की प्रसन्नता को चिंता में बदल दिया l महर्षि ने हर संभव औषधि - उपचार किया , आयुर्वेद के पन्ने पलट -पलट कर महर्षि थक गए लेकिन दोष दूर नहीं हुआ l परिस्थितियों से निराश महर्षि ने अपना सारा ध्यान अपाला को ज्ञानवान बनाने में लगा दिया l वेद , उपनिषद , आरण्यक , व्याकरण मीमांसा , दर्शन ग्रन्थ , संगीत आदि के अध्ययन से अपाला शीर्षस्थ विद्वानों की श्रेणी में जा पहुंची l अब महर्षि अत्रि को उसके विवाह की चिंता हुई , त्वचा के इस दोष के साथ कौन विवाह करेगा l आखिर उन्हें ऐसा आदर्श पुरुष मिल गया जो उनका शिष्य भी रह चुका था --- कृशाश्व के साथ अपाला का विवाह वैदिक रीति से संपन्न हुआ l प्रारम्भिक आकर्षण में तो सब गुण दीखते थे , कुछ समय बाद जब ये आकर्षण कम हुआ तो प्रेम की पावनता उपेक्षा और तिरस्कार में परिवर्तित हो गई l इस उपेक्षा और अपमान से अपाला छटपटा गई , उसने इस संबंध में जब कृशाश्व से पूछा तो उसने कहा --- प्रेम के स्थान पर सौन्दर्य की अभिलाषा ने उसके आदर्श को तोड़ दिया है l यह सुनकर उसे पीड़ा बहुत हुई लेकिन उसका स्वाभिमान जाग गया l उसे यह बोध हुआ कि अपने आत्मविश्वास , अपनी शक्ति , अपने पैरों पर खड़े होने का भरोसा ही मनुष्य की सांसारिक अपमान से सुरक्षा कर सकता है l अपाला पिता के घर आ गई , उसने अपना कष्ट किसी से कहा नहीं l आचार्य श्री लिखते हैं ----' मनुष्य के मन में बड़ी शक्ति है , जिधर लगा दे उधर ही समस्त ज्ञान के कोष एकत्रित कर देता है l ' अपाला ने अपना सारा ध्यान अपने मन और आत्मा के परिष्कार पर केन्द्रित कर लिया l जप -तप , हवन -व्रत , पूजा -उपासना , योग , ध्यान , अनुशासन , नियम ,संयम आदि के द्वारा उसने अपने अंत:करण को पूर्ण शुद्ध कर लिया l आत्मा को शुद्ध और सुघड़ बनाने के लिए उसने देवराज इंद्र की उपासना की , पिता के रूप में उनका निरंतर स्मरण किया l शेष संसार से उसका संबंध टूट गया , दिन -रात एक कर दिए उसने इस साधना में l शरद पूर्णिमा की रात को जब सारा संसार निद्रा में था , देवराज इंद्र उसके सामने प्रकट हुए l अपने आराध्य को सामने देख अपाला की आँखों से झर -झर आंसू बह चले l भगवान इंद्र ने वात्सल्य भरे ह्रदय से कहा --- " मैं तुम्हारी त्वचा के दोष को दूर करता हूँ l ' अपाला ने कहा --- देव ! यह शरीर आज नहीं तो कल छूटेगा l यह रुग्ण रहे या रोग मुक्त उससे क्या बनता -बिगड़ता है l आप मुझे ऐसी सामर्थ्य , विद्या और प्रकाश दें जिससे मैं इस प्रसुप्त भौतिक आकर्षणों में डूबे इस संसार को कुछ ज्ञान दे सकूँ , संसार का कल्याण कर सकूँ l ' तथास्तु ' कहकर इंद्र अद्रश्य हो गए l अब अपाला का शरीर पूर्ण स्वस्थ होकर एक अनोखी कांति , अनोखे आकर्षण से चमकने लगा l यह बात हवा में घुलकर पूरे आश्रम और राष्ट्रवासियों के अंत: करण को स्पर्श कर गई l कृशाश्व ने सुना तो वे भी दौड़े आए और बड़ी अनुनय -विनय की लेकिन अब अपाला ने साथ जाने से इनकार कर दिया और अपना शेष जीवन पिता के साथ रहकर धर्म और समाज सेवा में बिताया l ऐसा चमत्कार हर युग में संभव है l योग और ध्यान साधना , नियम , संयम , अनुशासन , निष्काम कर्म के साथ अपने मन और विचारों को परिष्कृत कर के , सन्मार्ग पर चलकर इस प्रदूषित युग में भी मनुष्य स्वस्थ रहकर उस अनोखी कांति को पा सकता है l
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