महाभारत के विभिन्न प्रसंग हमें यह सिखाते हैं कि यदि हम संसार पर विश्वास करने के बजाय ईश्वर पर विश्वास करें , ईश्वर के प्रति समर्पित हों तो वे हर पल हमारी रक्षा करते हैं l महाभारत के युद्ध में दुर्योधन ने भगवान श्रीकृष्ण की विशाल सेना को चुना लेकिन अर्जुन विवेकशील था , श्रीकृष्ण ने कहा कि वे युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे फिर भी उसने भगवान को ही चुना और अपने जीवन रूपी रथ की बागडोर उन्हें सौंप दी और अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुए वह निश्चिन्त हो गया l अब अर्जुन समेत सभी पांडवों की जिम्मेदारी भगवान के सिर पर आ गई l वे हर पल पांडवों की सुरक्षा का ध्यान रखते थे l ईश्वर विश्वास में यह खासियत है कि वे अपने सभी भक्तों का मान रखते हैं चाहे वह ' पांडवों के पक्ष का हो या कौरवों के पक्ष का , बस ! उनका भक्त सच्चा हो l --- युद्ध आरम्भ हुआ l दुर्योधन प्राय: पितामह को उकसाता रहता था कि आपने तो परशुराम जी को भी युद्ध में पराजित किया है , देवता भी आपके सामने नहीं टिक सकते फिर पांडवों की क्या मजाल ! कहीं हस्तिनापुर के प्रति आपकी निष्ठा तो नहीं डिग रही ? ' दुर्योधन के कटु वचन सुनकर भीष्म व्यथित हो गए और उन्होंने पांच बाण अपने तुणीर से अलग करते हुए प्रतिज्ञा की --- ' कल के युद्ध में इन पांच बाणों से पांडवों का वध होगा l ' दुर्योधन ने कहा --- ' यदि ऐसा न हुआ तो ! ' तब भीष्म ने कहा --- ' तो फिर स्वयं श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाना पड़ेगा l ' दुर्योधन के वचन देने के बाद भीष्म बहुत व्यथित हो गए l श्रीकृष्ण ने तो प्रतिज्ञा की थी कि वे युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे , अब भीष्म पितामह शिविर में भगवान श्रीकृष्ण को पुकारने लगे , अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए वे भगवान श्रीकृष्ण से उन्ही की प्रतिज्ञा को तोड़ने की प्रार्थना करने लगे , आँखें बंद कर के भगवान की प्रार्थना करने लगे ---- 'हे माधव ! हे कृष्ण ! अपने भक्त की लाज रखो l ' अब भगवान को पांडवों की रक्षा भी करनी थी और अपने भक्त भीष्म पितामह का भी मान रखना था l इसलिए उन्होंने लीला रची l वे महारानी द्रोपदी को लेकर भीष्म के शिविर पहुंचे l उस समय भीष्म पितामह आँखें मूंदे श्रीकृष्ण का ही ध्यान कर रहे थे l द्रोपदी के प्रणाम करने पर उन्होंने आँखें मूंदे ही ' सौभाग्यवती 'होने का आशीर्वाद दे दिया l फिर उन्होंने आँखें खोली और द्रोपदी को देखा तो भगवान की सारी लीला समझ गए कि द्रोपदी को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देकर पांडव सुरक्षित हो गए l श्रीकृष्ण ने पितामह से कहा --- ' विश्वास रखिए , मेरा मान भले ही भंग हो जाए मेरे भक्त का मान कभी भंग नहीं होगा l ' अगले दिन भयानक युद्ध हुआ l श्रीकृष्ण को महसूस हुआ कि पितामह के प्रति श्रद्धा के कारण अर्जुन ठीक से युद्ध नहीं कर रहे हैं l इसके लिए उन्होंने अर्जुन को टोका भी l भगवान रथ भी बड़ी निपुणता से चला रहे थे फिर भी भीष्म के चलाए कई बाण अर्जुन व श्रीकृष्ण के शरीर पर लगे l अब अर्जुन की सुस्ती देख भगवान को क्रोध आ गया और अपनी ही प्रतिज्ञा को भंग कर वे घोड़े की रास छोड़कर रथ से कूद पड़े और टूटे रथ के पहिये को लेकर भीष्म की ओर दौड़ पड़े l यह देख भीष्म अति प्रसन्न हुए और बोले -- " आओ ! माधव आओ ! मेरे अहोभाग्य , मेरी खातिर तुम्हे रथ से उतरना पड़ा l तुम्हारे हाथों मरकर मैं वह पद प्राप्त करूँगा , जहाँ से इस पार लौटना ही नहीं पड़ता l " भगवान ऐसे भक्तवत्सल होते हैं , अपने भक्त की प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी l यह देख अर्जुन बड़ी तेजी से दौड़कर भगवान को पकड़ पाए और बोले --- 'भगवान ! मेरी सुस्ती के लिए क्षमा करें , नाराज न हों ! ' भीष्म के मन मंदिर में यह द्रश्य समा गया कि साक्षात् भगवान चक्र लेकर उनके सामने हैं l शरशैया पर पड़े हुए अंतिम क्षणों तक वे भगवान के इसी रूप का ध्यान करते रहे l
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