' कर्म की गति बड़ी गहन है l '----- पुराण की एक कथा है --- एक बार नारद जी अपने एक शिष्य के साथ पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे l रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो प्याऊ पर पानी पीकर एक पेड़ की छाया में सुस्ताने लगे l तभी उन्होंने देखा कि एक कसाई 30 बकरों को लेकर जा रहा है l उनमे से एक बकरा झुण्ड में से निकलकर एक सेठ की दुकान में रखे बोरी में अनाज को खाने लगा l सेठ को उस पर बहुत क्रोध आया , उसने छड़ी से उसे खूब मारा और कसाई के हवाले कर दिया l यह सब देख नारद जी को हँसी आ गई l शिष्य ने उनसे हँसने का कारण पूछा तो नारद जी ने कहा ---- " यह बकरा इसी दुकान का मालिक सेठ मूलचंद है जो अपने कर्मों के कारण बकरा बना l अपने मोह और आसक्ति के कारण ही यह उस दुकान में गया और अन्न के दाने खाने लगा l इस दुकान का वर्तमान सेठ इसी मूलचंद का बेटा है l जिस बेटे के लिए उसने इतना कमाया , मिलावट की , बेईमानी की , वही बेटा आज इसे थोड़ा सा अन्न भी खाने को नहीं दे रहा l इस बकरे ने थोड़ा सा खा भी लिया तो इतनी पिटाई की और कसाई को भी सौंप दिया l कर्म की यह गति और मनुष्य का मोह देखकर मुझे हँसी आ रही है l " जो समझदार हैं , कर्म की गति को समझते हैं उनकी चाहे बड़ी दुकान हो या ठेला , वे अपने पास आने वाले किसी गरीब को कभी निराश नहीं करते , सड़क पर घूमने वाले जानवरों को भी कुछ न कुछ देकर पुण्य संचित कर लेते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं --" -मृत्यु के बाद हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते l हम समस्याओं से भागकर दुनिया के किसी भी कोने में चलें जाएँ , हमारे कर्म हमें उसी तरह ढूंढ लेते हैं जैसे बछड़ा हजार गायों में भी अपनी माँ को ढूंढ लेता है l कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है , लेकिन कब और कैसे यह भुगतान करना होगा इसे काल निश्चित करता है l l '
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