लघु -कथा --- एक बार एक राजा ने मंत्री ने प्रश्न किया कि , क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ? मंत्री ने कहा --हाँ ऐसा संभव है लेकिन इस प्रश्न का उत्तर समझकर , सही तरीके से एक महात्मा दे सकते हैं जो गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं l राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर महात्मा से मिलने चल दिए ल दो -चार कदम चलकर मंत्री ने राजा से कहा --- " महाराज ! ऐसा नियम है कि जो महात्मा से मिलने जाता है , वह रास्ते में चलते हुए कीड़े -मकोड़ों को बचाता चलता है l यदि एक भी कीड़ा पांव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं l राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख -देखकर पांव रखने लगे l इस प्रकार सावधानी पूर्वक चलते हुए वे महात्मा जी के पास पहुंचे l महात्मा ने दोनों को सम्मान पूर्वक बैठाया और राजा से पूछा ---l राजन ! आपने रास्ते में क्या -क्या देखा l राजा ने कहा --- भगवान ! मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते भर कीड़े - मकोड़ों के देखता और उन्हें बचाता आया l इसलिए मनेर ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं l रास्ते के द्रश्यों के बारे में मुझे कुछ मालूम नहीं l " महात्मा ने कहा --- " यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है l जिस तरह मेरे श्राप से डरते हुए तुम यहाँ तक आए , उसी तरह ईश्वर के दंड से डरना चाहिए l कीड़ों को बचाते हुए जैसे चले , उसी प्रकार दुष्कर्मों से बचते चलना चाहिए l रास्ते में अनेक द्रश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़ें l उनके आकर्षण में उलझो नहीं l जिस सावधानी से तुम मेरे पास आए हो उसी सावधानी के साथ जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो l " राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया और उसने महात्मा जी के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास शुरू किया l
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