11 December 2022

WISDOM

  एक  बार  सम्राट  अशोक  के  शासनकाल  में   अकाल  पड़ा  l  जनता  भूख  और  प्यास  से  त्रस्त  हो  उठी  l  राजा  ने  तत्काल  राज्य  में  अन्न  के  भंडार  खुलवा  दिए  l  सुबह  से  लेने  वालों  का  ताँता  लगा  रहता  l  एक  दिन  संध्या  हो  गई  l  जब  सब  लेने  वाले  निपट  गए   तो  एक   बहुत  कमजोर  बूढ़ा  आया  और  उसने  अन्न  माँगा  l  बाँटने  वाले  तब  तक  थक  चुके  थे  , उन्होंने  उसे  डांटकर  कहा --' कल  आना  , अब  खैरात  बंद  हो  गई  l '  तभी  एक  ह्रष्टपुष्ट  नवयुवक  आया   और  बाँटने  वालों  से  कहा  --- " बेचारा  बूढ़ा  है  , शरीर  से  दुर्बल  होने  के  कारण   सबसे  पीछे  रह  गया  l  इसे  अन्न  दे  दो  l " उसकी  वाणी  का  प्रभाव  था  कि  बाँटने  वालों  ने  उसे  अन्न  दे  दिया  l  उस  नवयुवक  की  सहायता  से  उसने  गठरी  बाँध  ली  l  लेकिन    उठे  कैसे  ?  तब  वही   नवयुवक  बोला --- 'लाओ , मैं  ही  पहुंचा  देता  हूँ  l '  गठरी  उठाकर  चलने  लगा  l  बूढ़े  का  घर  थोड़ी  दूर  पर  ही  रह  गया  था  ,  तभी  एक  सैनिक  टुकड़ी  वहां  से  निकली  l  टुकड़ी  के  नायक  ने   घोड़े  पर  से  उतरकर     गठरी  ले  जाने  वाले  का  फौजी  अभिवादन  किया  l  नवयुवक  ने  संकेत  से  आगे  कुछ  बोलने  से  मना  कर  दिया  l  बूढ़े  की  समझ  में  कुछ -कुछ  आ  गया  , वह  वहीँ  खड़ा  हो  गया  और  बोला  -- " आप  कौन  हैं  , सच -सच  बताइए  ? "  वह  व्यक्ति  बोला --- " मैं  एक  नौजवान  हूँ  और  तुम  वृद्ध  हो  दुर्बल  हो  l  बस , इससे  अधिक  परिचय  व्यर्थ  है  l  चलो  बताओ  तुम्हारा  घर  किधर  है  ? '  अब  तक  बूढ़ा  पूरी  तरह  से  पहचान  चुका  था  , वह  उनके  पैरों  पर  गिर  पड़ा  और  क्षमा  मांगते  हुए  बोला  -- 'प्रजापालक  !  आप  सच्चे  अर्थों  में  प्रजापालक  हैं  l  "

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