कर्म करने का व्यक्ति को अधिकार है लेकिन वह उसके परिणाम से बच नहीं सकता l महाभारत का प्रसंग है ---- दुर्योधन के कहने पर दु:शासन ने द्रोपदी का चीर हरण किया l स्वयं भगवान कृष्ण ने द्रोपदी के चीर को अनंत कर दिया l दु:शासन में दस हजार हाथियों का बल था , वह थक गया , पस्त होकर गिर पड़ा , अपने उद्देश्य में वह तनिक भी सफल नहीं हो पाया l भगवान चाहते तो उसी समय दुर्योधन और दु:शासन का अपने सुदर्शन चक्र से अंत कर देते लेकिन यहाँ ईश्वर ने बताया कि पापियों को दंड तो अवश्य मिलता है , यह कब मिलेगा इसका ईश्वरीय विधान के अनुसार समय निश्चित हैं l द्रोपदी जब भी भगवान को अपने खुले केश दिखाती और कृष्ण जी से कहती -- हे माधव -! वह वक्त कब आएगा जब मैं अपने इन खुले केशों को बांधुंगी l तब कृष्ण जी यही कहते कि केवल दुर्योधन और दु:शासन के अंत के लिए ही अवतार नहीं लिया , अवतार का उद्देश्य है --अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना l दैवीय विधान के अनुसार ही सबको अपने कर्मों का फल मिलेगा l पापियों को फलते -फूलते देख सामान्य जन का कर्म विधान से विश्वास हट जाता है और वह भी पाप और अनीति की राह पर चलने लगता है l संसार में ऐसे असंख्य उदाहरण देखकर हमें कर्म फल विधान पर विश्वास रखकर सदा सत्कर्म करने चाहिए l
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