पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- विनम्रता व्यक्ति को ग्रहणशील , संवेदनशील बनाती है l विनम्रता से व्यक्ति का विवेक जाग्रत होता है , वह औचित्य् पूर्ण कार्य कर पाता है l विनम्रता से ही व्यक्ति के अंदर सद्गुणों का समावेश होता है l ' ये सद्गुण ही व्यक्ति को महानता के पथ पर ले जाते हैं l पुराण की एक कथा है ----- किसी समय भीलों की शबर जाति में कृपालु नाम का व्यक्ति था जो ' वृक्ष नमन ' मन्त्र विद्या जानता था l यह मन्त्र उसके अलावा केवल उसके पुत्र को ही पता था l उसकी विद्या में ऐसा प्रभाव था कि खजूर के ऊँचे -ऊँचे वृक्ष भी झुक जाते थे और उनका रस वह सरलता से एकत्र कर लेता था l एक दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने उसे इस विद्या का प्रयोग करते देख लिया तो उनके मन में इस मन्त्र को जानने की जिज्ञासा हुई l वे कृपालु के नजदीक गए ताकि उससे नम्रता से मन्त्र सीख लें लेकिन कृपालु उन्हें देखकर भाग गया l वे उसके पीछे उसके घर गए तो वह वहां से भी भागने लगा l व्यास जी समझ गए कि कृपालु उन्हें मन्त्र नहीं देना चाहता और सामने आने से कतरा रहा है l इसलिए वह शांत भाव से वापस लौटने लगे l कृपालु के बेटे को उन पर दया आ गई और उसने कुछ कर्मकांड कर के उन्हें वह मन्त्र सिखा दिया l रास्ते में व्यास जी ने नारियल के वृक्ष को लक्ष्य कर के मन्त्र जपा तो वह वृक्ष झुक गया , उन्होंने एक नारियल तोड़ लिया फिर ऐसा मन्त्र जपा कि वह वृक्ष फिर अपनी जगह पर हो जाये l कृपालु जब घर लौटा तो उसके पुत्र ने उसे बताया कि उसने वह मन्त्र उन्हें सिखा दिया l इस पर कृपालु नाराज होकर कहने लगा --- " मूर्ख है तू ! वेदव्यास जी इतने बड़े महापुरुष हैं
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