पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- अपने दोष बताने वाले से क्रुद्ध न हों , उसका कारण समझें और उस दोष को दूर करें उस में अपना हित ही है l वे आगे लिखते हैं --- बड़ों की सीख याद रखने वाला अनर्थ से बच जाता है l ' एक कथा है ---- सम्राट वृष मातंग साधुता और शील में अद्वितीय थे लेकिन उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था l एक बार उनकी परिचारिका ने उनकी सेवा परिचर्या करने से इनकार कर दिया और बोली -- " आपके शरीर से दुर्गन्ध आती है l " सम्राट क्षण भर को क्रोध से उबल पड़े पर तभी उन्हें अपने आचार्य के ये वचन याद आ गए --- " प्रशंसा और निंदा को समभाव से ग्रहण करने वाला ही सच्चा योगी होता है l " अत: वे अपने क्रोध को पी गए और मन में यह निश्चय किया कि यदि शरीर में कोई कमी है तो उसे दूर करेंगे l अपनी निंदा सुनकर हमारे मन में हीन भावना नहीं आनी चाहिए और न ही क्रोधित होना चाहिए l सम्राट ने वैद्यों को बुलाया और दुर्गन्ध का कारण पूछा l शरीर की परीक्षा हुई , पता चला कि उनके दांत में भयंकर रोग हो गया है l यदि एक दो दिन में चिकित्सा नहीं हुई तो वह असाध्य हो जायेगा l समय पर चिकित्सा हुई वे स्वस्थ और दुर्गन्ध रहित हो गए l
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