11 December 2022

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---  अपने  दोष  बताने  वाले  से  क्रुद्ध  न  हों ,  उसका  कारण  समझें  और  उस  दोष  को  दूर  करें  उस  में  अपना  हित  ही  है  l  वे  आगे  लिखते  हैं --- बड़ों  की  सीख  याद  रखने  वाला  अनर्थ  से  बच  जाता  है  l '  एक  कथा  है ---- सम्राट  वृष  मातंग   साधुता  और  शील   में  अद्वितीय  थे   लेकिन  उन्हें  क्रोध  बहुत  जल्दी  आता  था   l  एक  बार  उनकी  परिचारिका  ने   उनकी  सेवा  परिचर्या  करने  से   इनकार  कर  दिया   और  बोली  -- " आपके  शरीर  से  दुर्गन्ध  आती  है  l "  सम्राट  क्षण  भर  को  क्रोध  से  उबल  पड़े    पर  तभी  उन्हें  अपने  आचार्य  के  ये  वचन  याद  आ  गए  --- " प्रशंसा  और  निंदा  को   समभाव  से  ग्रहण  करने  वाला  ही  सच्चा  योगी  होता  है  l "  अत:  वे  अपने  क्रोध  को  पी  गए   और  मन  में  यह  निश्चय  किया  कि  यदि  शरीर  में  कोई  कमी  है   तो  उसे  दूर  करेंगे   l  अपनी  निंदा  सुनकर   हमारे  मन  में  हीन  भावना  नहीं   आनी   चाहिए  और  न  ही  क्रोधित  होना  चाहिए  l   सम्राट  ने  वैद्यों  को  बुलाया   और  दुर्गन्ध  का  कारण  पूछा  l  शरीर  की  परीक्षा  हुई  ,  पता  चला  कि   उनके  दांत  में  भयंकर  रोग  हो  गया  है  l  यदि  एक  दो  दिन  में  चिकित्सा  नहीं  हुई  तो   वह  असाध्य  हो  जायेगा  l  समय  पर  चिकित्सा  हुई   वे  स्वस्थ  और  दुर्गन्ध रहित  हो  गए   l  

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