1 March 2025

WISDOM -----

  संसार  में   जब -तब  युद्ध , दंगे -फसाद    होते  रहते  हैं  l    यह  मानव  निर्मित  आपदा  है  l  इसके  अनेक  कारण  है  l  प्राचीन  समय  में   राजा  अपनी  शक्ति , योग्यता  , प्रशासनिक  कुशलता  के  बल  पर  चक्रवर्ती  सम्राट  बनते  थे   और  उनके  शासनकाल  में  प्रजा  बहुत  सुखपूर्वक  रहती  थी  l  चारों  ओर  शांति  रहती  थी l  कला , साहित्य , उद्योग   ,  व्यापार  सभी  क्षेत्र  तरक्की  करते  थे , कहीं  कोई  अराजकता , अशांति  नहीं  होती  थी  l  ऐसा  युग  'स्वर्ण युग  ' कहलाता  था  l  चक्रवर्ती  सम्राट   बनने   की  प्रतिस्पर्धा  तो  अब  भी  है   l  लेकिन  अब  इसके  मायने  बदल  गए  l  अब  प्रशासनिक  कुशलता  का  स्थान  धन -संपदा  ने  ले  लिया  l  जो  जितना  अमीर  है  , उसकी  उतनी  ही  हुकूमत  है  l  अति  की  धन -संपदा  व्यापारी  वर्ग  ही  अर्जित  कर  सकते  हैं  l  व्यापारी  का  उदेश्य   अधिकाधिक  लाभ  कमाना  होता  है ,  उनमें  संवेदना  नहीं  होती  l  वे  केवल  अपना  हित  देखते  हैं  ,  लोगों  के  सुख -दुःख  से  उन्हें  कोई  मतलब  नहीं  होता  l   मात्र  सोच  बदल  जाने  से  संसार  में  युद्ध  उत्पात  होते  हैं  l  जब  सत्ता  की  चाबी  व्यापारियों  के  हाथ  में  आ   जाती   है  तो ' जन हित ' के  स्थान  पर ' स्वहित ' हो  जाता  है  l   सारी  नीतियाँ  ऐसी  ही  बनती  हैं  जिससे  वे  और अमीर ---और  अमीर  होते  जाएँ  l   हथियार  का  व्यापारी  चाहेगा  की  युद्ध  होते  रहें   ताकि  उसके  हथियार  बिक  जाएँ , दवा , इंजेक्शन  बनाने  वाला  चाहेगा  कि  लोग  खूब  बीमार  पड़ें  जिससे  वो  और  अमीर  हो  जाये  l  रासायनिक  खाद , बीज  , कीटनाशक  का  निर्माता  चाहेगा  कि  कृषि  में  इनका  अधिकाधिक  प्रयोग  हो  चाहें  इनकी  वजह  से  कितनी  ही   घातक    बीमारियाँ  क्यों  न  हो  जाएँ  l  जब  सारा  संसार  धन  के  पीछे  भागेगा  तो  किसी  भी  राष्ट्र  की  नींव  --शिक्षा , चिकित्सा , बाल -कल्याण  --- ये  क्षेत्र  भी  बेईमानी  और  भ्रष्टाचार  में  कोई  कमी  नहीं  रहने  देंगे  l  धन -संपदा  की  एक  खास  बात  है   कि  यदि  धन   सीमित  मात्रा  में  है  और  उसका  सदुपयोग  होता  है   तब  वह  परिवार  हो  या  कोई  देश  हो  वह  फलता  -फूलता  है  लेकिन  यदि  वही  धन  असीमित   मात्रा    में  है   और  उसका  दुरूपयोग  होता  है  तब  ऐसा  धन   व्यक्ति  हो , परिवार  हो  या  कोई  राष्ट्र  हो  उसे  भीतर  से  खोखला  कर  देता  है  l  बाहरी   तौर    से  तो  बहुत  दिखावा ,  बहुत  शान-शौकत  होगी   लेकिन  भीतर  से  खोखला  l  इसलिए  धन  का  सदुपयोग  करने  की  कला   आनी    चाहिए  l  यदि  आज  के  जो  इतने  अमीर  हैं  यदि  इन्हें   धन   के  सदुपयोग  करने  की  कला  आ  जाये   तो  इनके   जीवन  में  ही  संसार  इन्हें  देवता  की  तरह  पूजे  l  लेकिन  देवता  बनना  इतना  आसान  नहीं  है  l  अब  तो  देवता  बनने  के  मार्ग  पर  अग्रसर   साधु -संत  भी  धन  की  चपेट  में  आकर   अपने  मार्ग  से  भटक  गए  l  ईश्वर  सबको  सद्बुद्धि  दे  l