लघु कथा ----- ' मन का अभ्यास '---- भिखारी ने हाथ आगे बढ़ाया लेकिन अश्वपति की जेब में कुछ न निकला l वे दुःखी होकर घर गए और एक बरतन उठाकर ले आए और उसे भिखारी को दे दिया l थोड़ी देर में अश्वपति की पत्नी आई और वह बरतन न पाकर चिल्लाई ---अरे , अरे चांदी का बरतन भिखारी को दे दिया l दौड़कर उसे वापस ले आओ l अश्वपति ने आगे बढ़कर भिखारी को रोककर कहा --- " भाई ! मेरी पत्नी ने बताया कि यह गिलास चांदी का है , इसे सस्ता मत बेच देना l " एक पड़ोसी ने पूछा ---- " अश्वपति ! जब तुम्हे पता हो गया था कि गिलास चांदी का है , तो भी उसे क्यों ले जाने दिया ? " अश्वपति ने हँसकर कहा ---- " मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि यह बड़ी से बड़ी हानि में भी दुःखी और निराश न हो l "