' शिक्षा और चरित्र से ही उच्च कार्य क्षमता , सुखमय जीवन और दीर्घायु प्राप्त होती है । '
श्री विश्वेश्वरैया शिक्षा के साथ चरित्र को राष्ट्र के उत्थान का मुख्य आधार मानते थे । उन्होंने कहा था ----- " यदि आप एक अच्छे राष्ट्र की नींव रखना चाहते हैं तो उसके नागरिकों को उत्तम बनाइये एक सफल राष्ट्र वह होता है , जिसके नागरिकों की बहुसंख्या कुशल , चरित्रवान और अपने कर्तव्य को समझने वाली हो । "
उनका कहना था कि राष्ट्रीय चरित्र के विकास की नीति सरकार की दीर्घ कालीन नीतियों में होनी चाहिए । उन्होंने संसार के अति उन्नतिशील देशों की स्थिति का अध्ययन करके भारतवासियों के लिए कुछ आचार नियम बनाये । उनकी संक्षिप्त व्याख्या करते हुए उन्होंने अपनी पुस्तक ' मेरे कामकाजी जीवन के संस्मरण ' में इन नियमों की व्याख्या करते हुए इन्हें चार भागों में बांटा है ----- 1. कठोर श्रम -- आलसी और परिश्रम से जी चुराने वाले व्यक्ति कभी उच्च स्थान पर नहीं पहुँच सकते , इसलिए भारतीयों को पश्चिमी देशों के लोगों की भांति कठोर श्रम करना चाहिए ।
2.नियोजित तथा अनुशासित कार्य ---- अनुशासित ढंग से कठोर श्रम करने से व्यक्ति स्वस्थ और दीर्घायु होता है ।
3.कार्य कुशलता ----- जहाँ तक संभव हो मनुष्य अपने काम को परिश्रम , महत्वाकांक्षा , अनुशासन तथा नियम के साथ करे ।
4.विनय और सेवा ---- अधिक श्रम किसी मजबूरी या लालच से न करके किसी उच्च आदर्श और कर्तव्य पालन की भावना से करें तथा दूसरों के साथ मिलजुलकर काम करें ।
उनका मत था कि ये सब लाभदायक गुण बिना प्रशिक्षण के प्राप्त नहीं किये जा सकते । इस प्रकार का प्रशिक्षण शिक्षा - संस्थाओं में दिया जाना चाहिए और व्यस्क व्यक्तियों को सरकार के निर्देशन में यह सब कुछ सिखाया जाना चाहिए ।
श्री विश्वेश्वरैया शिक्षा के साथ चरित्र को राष्ट्र के उत्थान का मुख्य आधार मानते थे । उन्होंने कहा था ----- " यदि आप एक अच्छे राष्ट्र की नींव रखना चाहते हैं तो उसके नागरिकों को उत्तम बनाइये एक सफल राष्ट्र वह होता है , जिसके नागरिकों की बहुसंख्या कुशल , चरित्रवान और अपने कर्तव्य को समझने वाली हो । "
उनका कहना था कि राष्ट्रीय चरित्र के विकास की नीति सरकार की दीर्घ कालीन नीतियों में होनी चाहिए । उन्होंने संसार के अति उन्नतिशील देशों की स्थिति का अध्ययन करके भारतवासियों के लिए कुछ आचार नियम बनाये । उनकी संक्षिप्त व्याख्या करते हुए उन्होंने अपनी पुस्तक ' मेरे कामकाजी जीवन के संस्मरण ' में इन नियमों की व्याख्या करते हुए इन्हें चार भागों में बांटा है ----- 1. कठोर श्रम -- आलसी और परिश्रम से जी चुराने वाले व्यक्ति कभी उच्च स्थान पर नहीं पहुँच सकते , इसलिए भारतीयों को पश्चिमी देशों के लोगों की भांति कठोर श्रम करना चाहिए ।
2.नियोजित तथा अनुशासित कार्य ---- अनुशासित ढंग से कठोर श्रम करने से व्यक्ति स्वस्थ और दीर्घायु होता है ।
3.कार्य कुशलता ----- जहाँ तक संभव हो मनुष्य अपने काम को परिश्रम , महत्वाकांक्षा , अनुशासन तथा नियम के साथ करे ।
4.विनय और सेवा ---- अधिक श्रम किसी मजबूरी या लालच से न करके किसी उच्च आदर्श और कर्तव्य पालन की भावना से करें तथा दूसरों के साथ मिलजुलकर काम करें ।
उनका मत था कि ये सब लाभदायक गुण बिना प्रशिक्षण के प्राप्त नहीं किये जा सकते । इस प्रकार का प्रशिक्षण शिक्षा - संस्थाओं में दिया जाना चाहिए और व्यस्क व्यक्तियों को सरकार के निर्देशन में यह सब कुछ सिखाया जाना चाहिए ।