पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " इन्द्रिय संयम में वाणी का संयम प्रमुख है l अनावश्यक बोलने में जितनी गलतफहमियां और समस्याएं पैदा होती हैं , उतनी मौन से नहीं होतीं l निरर्थक बोलना बहुत थकाने वाली प्रक्रिया है l सभी को अपने जीवन में मौन का अभ्यास करना चाहिए l इससे बहुत सारे फायदे होंगे l सर्वप्रथम वाद -विवाद थमेंगे l अनावश्यक बातें नहीं बिगड़ेंगी , कलह , क्लेश नहीं होंगे l मौन रहने से शांति का साम्राज्य फैलेगा l " मौन रहने के साथ यह भी जरुरी है कि मौन की अवधि में मन शांत रहे , मन में सकारात्मक विचार रहें और शरीर सकारात्मक कार्यों में लगा रहे , आलसी बनकर न बैठें l यदि मौन के समय मन में नकारात्मक विचार रहेंगे , व्यक्ति मौन रहकर छल -कपट , धोखा देने , षड्यंत्र करने की योजना बनता रहेगा तो यह उस व्यक्ति और उसके स्वयं के लिए बहुत घातक होंगे l शक्ति का सदुपयोग बहुत जरुरी है , फिर चाहे वह मौन की हो , अपने धन , पद की हो और अपनी किसी विशेष योग्यता की हो l शक्ति का सदुपयोग न होने से ही आज संसार में तबाही है l शक्ति का सदुपयोग मनुष्य को देवत्व की श्रेणी में ले आता है लेकिन शक्ति का दुरूपयोग मनुष्य के भीतर के असुर को जगाकर उसे नर पिशाच बना देता है l शक्ति का सदुपयोग हो , इसके लिए सद्बुद्धि और विवेक की जरुरत है l सामान्य जन में सद्बुद्धि आ भी जाए तो उससे समाज और संसार में कोई परिवर्तन नहीं आ पाता l जिनके पास धन , पद , प्रतिष्ठा , वैभव , अति संपदा , संगीत , कला , खेल . चिकित्सा , निर्माण आदि विभिन्न क्षेत्रों में विशेष योग्यता हासिल है , सद्बुद्धि की सबसे ज्यादा जरुरत उन्ही को है ताकि वे उसका सदुपयोग कर औरों को भी सही दिशा में कार्य करने की प्रेरणा दे सकें , तभी संसार में शांति आ सकती है अन्यथा बारूद के ढेर पर आज संसार है , दुर्बुद्धि कब , क्या कहर ला दे , कोई नहीं जानता l
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