7 March 2025

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' ज्ञान -चक्षुओं  के  अभाव  में   हम  परमात्मा  के  अपार  दान  को  देख  और  समझ  नहीं  पाते  और  सदा  यही  कहते  रहते  हैं  कि  हमारे  पास  कुछ  नहीं  है  ,  हमें  कुछ  नहीं  मिला  l  लेकिन  यदि  हमें  जो  नहीं  मिला  उसकी  शिकायत  करना  छोड़कर  ,  जो  मिला  है  उसकी  महत्ता  को  समझें  तो  मालूम  होगा  कि   जो  कुछ  मिला  है  ,  वह  कम  नहीं  , अद्भुत  है  l   जो   परमात्मा    अनेक  सुख  देता  है  ,  यदि  वह  थोड़े  से  दुःख  देता  है  ,  तो  उन्हें  भी  प्रसन्नता पूर्वक  सहन  करना  चाहिए   l  "  -------- हकीम  लुकमान  जब  एक  अमीर  आदमी  के  दास  थे  l  वह  अमीर  कभी -कभी  ईश्वर  को  भला  बुरा  कह  देता  था  , लेकिन  वह  लुकमान  की  कर्तव्य परायणता  के  लिए  उनसे  स्नेह  करता  था  l  लुकमान  बहुत  नेक  , आज्ञाकारी  थे  l  एक  दिन  अमीर   ने  ककड़ी  खानी  चाही  , लेकिन  जैसे  ही  उसे   मुख  से  लगाईं  , वह  उन्हें कड़वी  लगी  l  उन्होंने  उसे  तुरंत  लुकमान  को  दे  दी   और  कहा  ---- 'ले , तू  इसे  खा  ले  l  हकीम  लुकमान  ने  ककड़ी   ले  ली  और  बिना  कुछ  कहे  उसे  चुपचाप  खा  लिया  , जैसे  वह   कोई  मीठी  ककड़ी  हो  l  l  अमीर  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ   , उसने  लुकमान  से  पूछा  ---- "  लुकमान , तुमने  इतनी  कड़वी  ककड़ी  किस  तरह  खा  ली  ? "  लुकमान  ने  कहा --- "  स्वामी  आ!  आप  मुझे  प्रतिदिन  स्वादिष्ट  भोजन  देते  हो  ,  एक  दिन  कड़वा  दिया  तो  क्या  उसे  फेंक  दूँ   या  उसके  लिए  आपको  दोष  दूँ  l  अपने  प्यारे  लोगों  की   चार  मिठास  में   एक  कड़वाहट  भी  हो  ,  तो  क्या  उसके  लिए  उसे  दोषी  ठहराना  चाहिए  l  "  अमीर  समझ  गया  कि   परमात्मा  ने  हमें  अनेक  सुख  दिए  हैं   l  यदि  कोई  दुःख  जीवन  में  आया  भी  है  तो  उसके  लिए  परमात्मा  को  भला -बुरा  नहीं  कहना  चाहिए  l