पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ज्ञान -चक्षुओं के अभाव में हम परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है , हमें कुछ नहीं मिला l लेकिन यदि हमें जो नहीं मिला उसकी शिकायत करना छोड़कर , जो मिला है उसकी महत्ता को समझें तो मालूम होगा कि जो कुछ मिला है , वह कम नहीं , अद्भुत है l जो परमात्मा अनेक सुख देता है , यदि वह थोड़े से दुःख देता है , तो उन्हें भी प्रसन्नता पूर्वक सहन करना चाहिए l " -------- हकीम लुकमान जब एक अमीर आदमी के दास थे l वह अमीर कभी -कभी ईश्वर को भला बुरा कह देता था , लेकिन वह लुकमान की कर्तव्य परायणता के लिए उनसे स्नेह करता था l लुकमान बहुत नेक , आज्ञाकारी थे l एक दिन अमीर ने ककड़ी खानी चाही , लेकिन जैसे ही उसे मुख से लगाईं , वह उन्हें कड़वी लगी l उन्होंने उसे तुरंत लुकमान को दे दी और कहा ---- 'ले , तू इसे खा ले l हकीम लुकमान ने ककड़ी ले ली और बिना कुछ कहे उसे चुपचाप खा लिया , जैसे वह कोई मीठी ककड़ी हो l l अमीर को बड़ा आश्चर्य हुआ , उसने लुकमान से पूछा ---- " लुकमान , तुमने इतनी कड़वी ककड़ी किस तरह खा ली ? " लुकमान ने कहा --- " स्वामी आ! आप मुझे प्रतिदिन स्वादिष्ट भोजन देते हो , एक दिन कड़वा दिया तो क्या उसे फेंक दूँ या उसके लिए आपको दोष दूँ l अपने प्यारे लोगों की चार मिठास में एक कड़वाहट भी हो , तो क्या उसके लिए उसे दोषी ठहराना चाहिए l " अमीर समझ गया कि परमात्मा ने हमें अनेक सुख दिए हैं l यदि कोई दुःख जीवन में आया भी है तो उसके लिए परमात्मा को भला -बुरा नहीं कहना चाहिए l