लघु -कथा --- एक ही रात में इतने सारे रुपयों की थैली देखकर माँ ने कड़ककर बेटे से पूछा ---- " यह धन तू कहाँ से लाया ? " बेटे ने कहा --- " सेंध काटकर ! माँ तू ही तो कहती थी कि मनुष्य को सदैव परिश्रम की कमाई ही खानी चाहिए l माँ , महाजन की सेंध काटने में मुझे कितना परिश्रम करना पड़ा , तू इस बात को समझ भी नहीं सकती l " चपत लगाते हुए माँ ने कहा --- " मूर्ख ! मैंने इतना ही नहीं कहा कि मनुष्य को परिश्रम का खाना चाहिए वरन यह भी कहा था कि वह ईमानदारी से कमाया हुआ भी हो l उठा यह धन , जिसका है उसे लौटकर आ और अपने गाढ़े पसीने की कमाई का भरोसा कर l " माता की इस शिक्षा को शिरोधार्य करने वाला चोर युवक अंततः महा संत श्रमनक के नाम से विख्यात हुआ l न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन का अर्थ है परिश्रम और ईमानदारी से कमाया गया धन l