31 July 2021

WISDOM -----

    जार्ज  बर्नाड  शॉ   का  कथन  है ------ "  जो  व्यक्ति  समाज  से  जितना  ले   यदि   उतना  ही  उसे  लौटा  दे   तो  वह  एक  मामूली   भद्र  व्यक्ति  माना  जायेगा   l       जो  समाज  से  जितना  ले   उससे  कहीं  अधिक  उसे  लौटा  दे    तो  उसे   एक  विशिष्ट  भद्र   व्यक्ति   कहा  जायेगा    और  जो   अपने  जीवनपर्यन्त   समाज  की  सेवा   में  लगा  रहे   और  प्रत्युपकार   में  समाज  से  कुछ भी  लेने  की   इच्छा  न  रखे    तो  वह  एक  असाधारण  भद्र   पुरुष  कहलायेगा   l   परन्तु  जो  व्यक्ति    समाज  का  सिर्फ    शोषण  ही  करता  रहे   और  समाज  को  देने  की  बात  भूल  जाये   उसे  क्या  ' जेंटिलमैन  '  माना  जायेगा   ? "

WISDOM -----

   मनुष्य  ईर्ष्या , द्वेष , लोभ - लालच  आदि   दुष्प्रवृतियों  में  इस  प्रकार  उलझ  जाता  है  कि   मृत्यु  को  अपने  अति  निकट  देखकर  भी  वह  इनसे  मुक्त  नहीं  हो  पाता  l   एक  कथा  है  ------  दो  बाज  एक  ही  पेड़  पर  रहते  थे  l   दोनों  शिकार  मार  कर  लाते  और   उसी  पेड़  पर  बैठकर   खाते   l   एक  दिन  एक  बाज  ने  साँप   पकड़ा   और  दूसरे  के  हाथ  चूहा  लगा  l   दोनों  अधमरे  थे   l   दोनों  ने  सुस्ताकर  खाने  के  लिए   पंजों  को  ढीला  छोड़  दिया   l   तनिक  सा  अवसर  मिला   तो  साँप   घायल  चूहे  को   निगलने  का  पैंतरा  दिखाने   लगा    l   दोनों  बाज  बहुत  हँसे ,  वे  सोचने  लगे      देखो  इन   मूर्ख   प्राणियों  की  हालत  ,  स्वयं  मरने  जा  रहे  हैं  ,  पर  फिर  भी    द्वेष  का  स्वभाव  और  पाने  का  लोभ  छूटता   नहीं   l  

30 July 2021

WISDOM ------

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " समुद्र  के  बीच  में  खड़ा    हुआ  प्रकाश  स्तम्भ  बुझ  जाए   तो     फिर    उस  क्षेत्र   में  चलने  वाले   जलयान   चट्टान  से  टकरा  कर   दुर्घटनाग्रस्त  होंगे  ही   l '                        समाज  में  छाये  हुए  अनाचार ,  असंतोष  व  दुष्प्रवृतियों  का    एकमात्र    कारण   यही  है  कि   जनसाधारण  की  आत्मचेतना  मूर्च्छित  हो  गई  है   l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' धूर्तता  के  बल  पर   आज  कितने  ही  अपराधी  प्रवृति  के  लोग    क़ानूनी  दंड  से  बच  निकलने   में  सफल  हो  जाते  हैं   लेकिन  असत्य  का  आवरण  अंतत:  फटता  ही  है   l   जन  समुदाय   में  व्याप्त  घृणा  का   सूक्ष्म  प्रभाव    उस  मनुष्य  पर  अदृश्य  रूप  से   पड़ता  है   l   विपुल  साधन  संपन्न  होते  हुए  भी  व्यक्ति  इसी  कारण   सुख  शांतिपूर्वक  नहीं  रह  पाता   क्योंकि  उन  उपलब्धियों   के  मूल  में  छिपी    अनैतिकता    व्यक्ति  की  चेतना  को  विक्षुब्ध  किए   रहती  है   l 

28 July 2021

WISDOM ------

  धर्म  क्या  है   ?  पं.  श्री  राम  शर्मा  आचार्य  जी  लिखते  हैं  ---- " धर्म  का  मर्म  है  ---- अन्याय  का  प्रतिकार ,  अनीति  का  विरोध  एवं   आतंक  का  उन्मूलन  l   धर्म  की  सार्थकता  प्रकृति  और  परमात्मा  का  साहचर्य  निभाने  में  है   और  पीड़ा  व  पतन  के  निवारण  में  है  l   धर्म  सद्भाव , सद्विचार   एवं  सत्कर्म  के   सम्मिलन  में  रहता  है "  l     महाभारत  के  महायुद्ध  में  धर्म , अधर्म  की  परिभाषा  बड़ी  विलक्षण  है  l   महाभारत  के  तीन  प्रमुख  पात्र    हैं     भीष्म  पितामह  --- बड़े  धर्मात्मा  थे  , इनका  जीवन  पवित्रता  और  पावनता  का  प्रतीक   था   l   गुरु  द्रोणाचार्य  --- ब्राह्मण  थे  , शस्त्र , शास्त्र  के  ज्ञाता  ,प्रकांड  विद्वान्  थे  l     कर्ण --- महादानी  और  महावीर  थे   l   प्रतिदिन  प्रात:  सूर्य  को  अर्घ्य  चढ़ाया  करते  थे   और  उसके  बाद  उनसे  कोई  कुछ  भी  मांग  ले , सहर्ष  देते  थे  l   उन्होंने  अपने  कवच  और  कुण्डल  देवराज  इंद्र  को  दान  में  दे  दिए  थे   l   लेकिन  इन  तीनो  ने  ही  दुर्योधन   के  अनेक  दुष्कृत्यों  में  से  एक  का  भी  विरोध  नहीं  किया   l   भरी  सभा  में  द्रोपदी  के  चीरहरण    पर  भी  मौन  रहे  ,  कोई  प्रतिरोध  नहीं  किया  l  सामर्थ्य , शौर्य  और  विद्या  होते  हुए  भी    अनीति  और  अधर्म  का  साथ  दिया  ,  ऐसे   व्यवहार  ने  उन्हें  अधर्म  की  कसौटी  पर  ला  खड़ा  किया  l   अधर्म  का  साथ  देकर  वे   न  तो   दुर्योधन  की  रक्षा  कर  सके    और  न  ही  स्वयं  की  रक्षा  कर  सके   l 

WISDOM ------

   महात्मा  ईसा  प्रात:  भ्रमण  के  लिए  जा  रहे  थे  l   उनके  साथ  उनके  शिष्य  भी  थे  l   घास  पर  ओस  की  बूंदे   मोतियों  सी   चमक  रही  थीं   l   पास  के  उद्यान  में  लिली  के  फूल  खिल  रहे  थे  l   ऐसे  में  एक  शिष्य  ने  पूछा  ---- "  भगवन  !  जीवन  में  सुख  एवं  सौंदर्य  का  रहस्य  क्या  है   ?  "  प्रश्न   के  उत्तर  में  ईसा  ने  कहा  --- " देख  रहे  हो  इन  लिली  के  फूलों  को   l   ये  सम्राट  सोलोमन  से  भी  ज्यादा  सुखी    और  सुन्दर  हैं   क्योंकि   इन्हें   न  तो  बीते  हुए  कल  का  दुःख  है    और  न  आने  वाले  कल  की  चिंता   l   ये  तो  बस ,  वर्तमान  में  अपनी  सुगंध   भरी  मुस्कराहट   बिखेर  रहे  हैं  l   जो  इन  लिली  के  फूलों  की  तरह    भूत   एवं  भविष्य  की   फिक्र   छोड़कर     वर्तमान  में   सत्कर्मों  की  सुगंध  बिखेरता  है  ,  वह  स्वयं  ही   जीवन  के  सुख  और  सौंदर्य   के  रहस्य  को   समझ  जाता  है   l  "

27 July 2021

WISDOM -----

   युगों - युगों  से  मनुष्य  का  स्वाभाव   अनेक  तरह  की  चिंताओं  से  ग्रस्त  रहा  है   l   चिंता  एक  ऐसा  रोग  है  ,  जो   कभी  भी    हमारे  विचारों  में  घुन  की  तरह  लग  जाता  है   l   एक  विचारक  का  कहना  है  ---' यदि  चलने  के  लिए   तैयार  खड़े  जहाज  में   सोचने - विचारने   की  शक्ति  होती   ,  तो  वह  सागर  की    उत्ताल    तरंगों   को  देखकर    डर    जाता     कि   ये  तरंगे  उसे  निगल  लेंगी   और  वह  कभी  बंदरगाह  से  बाहर  नहीं  निकलता   लेकिन  जलयान  सोच  नहीं  सकता  ,  इसलिए  उसे   कोई  चिंता  नहीं  होती   कि   जल  में  उतरने  के  बाद  उसका  क्या  होगा  ,  वह  तो  केवल  चलता  है   l  "   आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- इसी  तरह  यदि  हम  संकटों  व  परेशानियों  के  बारे  में  सोचकर  घबराएंगे  तो   विकास  के  मार्ग  पर  हमारा  एक  कदम    भी  आगे  बढ़ना  दूभर  हो  जायेगा  l   इसलिए  यदि  मन   आशंकाओं  और   नकारात्मक  कल्पनाओं  से  भर  रहा  हो   तो  अकेले  में  बैठकर   उन्हें  सोचना  नहीं  चाहिए  ,  तुरंत  अपने  मन  को  किसी  कार्य  में  लगाना  चाहिए    '  व्यस्त  रहें , मस्त  रहें  l  '

WISDOM -------

   एक  क्रांतिकारी   को  स्वतंत्रता  संग्राम  के  दिनों  में  फाँसी   की  सजा  दे  दी  गई   l   उनकी  विधवा  पत्नी  के  अतिरिक्त   घर  में  एक  युवा  कन्या  और  थी   l   पैसे   की  कमी ,  संरक्षक  का  अभाव   एवं  विपन्नता   अवरोध  के  रूप  में  सामने  खड़े  थे   l   ऐसे  में  एक  शिक्षित  नवयुवक   आगे   आया    और  क्रांतिकारी   की  बेटी   से  विवाह  हेतु  हाथ  आगे  बढ़ा  दिया   l   अधिकारियों   ने  धमकी  दी   कि   अब  तुम्हारे  पीछे  भी  पुलिस  पड़ेगी   l   क्यों  झंझट  में  पड़ते  हो   ?    युवक  डर   गया  l   घटना  एक  संपादक  के  संज्ञान  में  आई   l   उनने  अधिकारियों   से  जाकर  चर्चा  की   ,  उन्हें  समझाया  ,  यदि  आप  किसी  के  आंसू  पोंछ  नहीं  सकते   तो   रुलाने  का   भी  अधिकार  नहीं  है   l   पुलिस  अधिकारी  शर्मिंदा  हुआ  ,  उसने  क्षमा  मांगी   l   बाद  में  उसने  और  संपादक  महोदय   ने  मिलकर    विवाह  संपन्न  कराया  ,  सारा  व्यय  का  भार  भी  स्वयं  उठाया   l  विवाह  में  कन्या  के   के  पिता  की  जिम्मेदारी  निभाने   वाले  संपादक   सज्जन  थे  --- श्री  गणेश  शंकर  विद्दार्थी  ,  जिन्हे  अमर  हुतात्मा  की  बाद  में    संज्ञा  मिली   l 

26 July 2021

WISDOM ------

  बट्रेंड   रसेल  ने  लिखा  है  ---- " मानव  जाति   अब  तक  जीवित  रह  सकी   तो  अपने  अज्ञान  और  अक्षमता  के  कारण  ही  l   यदि  ज्ञान  व  क्षमता   मूढ़ता  के  साथ   युक्त  हो  जाये   तो  उसके   बच  रहने  की  कोई  संभावना  नहीं   l   जब  तक  मनुष्य  में  ज्ञान  के  साथ - साथ    विवेक  का  भी  विकास  नहीं  होता  ,  ज्ञान  की  वृद्धि   दुःख  की  वृद्धि  ही  साबित  होगी   l "   पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   अपने  आध्यात्मिक  अनुभवों  के  आधार  पर  बताया   है   ----- "   मानव  की  समस्याओं  का  यथार्थ   और   सार्थक    समाधान   उसकी  अपनी  चेतना  में  है   l   मानव  चेतना  को  सही  और  समग्र  ढंग  से   जाने  बिना  विज्ञान   अधूरा  है   l   वह  ऐसा  ही  है  कि   सारे  जगत  में  तो  प्रकाश  हो   और  अपने  ही  घर  में  अँधेरा  हो   l   ऐसे  अधूरे  ज्ञान  से   और  अपनी  ही  चेतना  को  न  जानने  से  जीवन  दुःख  में   परिणत  हो  जाता  है   l   जो  मानव  चेतना  के  ज्ञान  से    विमुख  है   ,  वह  अधूरा  है   और  इस  अधूरेपन  से  ही  दुःख  पैदा   होते  हैं    l  "    आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ----- विज्ञानं  ने  अपरिमित्तम  शक्तियां  मानव  को  दी  हैं  ,  पर  उससे  शक्ति  आई ,  शांति   नहीं   शांति  पदार्थ  को  नहीं  चेतना  को  जानने  से  आती  है   l   जिन्होंने  मात्र  विज्ञानं   की  खोज  की  है  वे  शक्तिशाली  तो  हो  गए  ,  पर  अशांत  हैं   और  जिन्होंने  मात्र  अध्यात्म  का  अनुसन्धान  किया  वे  शांत  तो  हो  गए  ,  पर  लौकिक  दृष्टि  से  अशांत  और  दरिद्र  हैं  l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- मैं  शक्ति  और  शांति  को  अखंडित  रूप  से  चाहता  हूँ   l   मैं  विज्ञानं  और  अध्यात्म  में  समन्वय  चाहता  हूँ  l    मनुष्य  न  तो  मात्र  शरीर  है  और   न  मात्र  आत्मा    ही   l   वह  दोनों  का  सम्मिलन  है   l   इसलिए  उसका  जीवन  किसी  एक  पर  आधारित  हो  ,  तो  वह  अधूरा   हो  जाता  है   l   इस  अधूरेपन  को  पूरा  करना  ही  युग  - धर्म   है   l 

WISDOM ------

   एक  बादशाह  ने  बहुत  शराब  पी  रखी   थी  l   मदहोशी  में  वे  गृहस्थों  के  घर  घुसने  लगे  l   साथ  में  वफादार  नौकर  भी  था  ,  उसने  वहां  जाने  से  रोका   और  वापस  राजमहल  में  ले  आया   l  होश  में  आने  पर   दूसरे  दिन   दरबारियों  ने   नौकर  की  गुस्ताखी  बताई  और   उसे  सजा  देने  को  कहा  l   बादशाह  ने  उसे  राज्य  का   मंत्री  बना  दिया    और  कहा   वफादारी   इसमें  है   कि   मालिक  को  गलत   रास्ते  पर  चलने  से  रोके  भी  l 

25 July 2021

गुरु स्वयं सत्पात्र को खोजते हैं ---

   सवर्णों  के  दबाव  के  कारण  अछूत  वर्ग  के  व्यक्तियों  को  मुसलमान   बनाने  में   यवनों  को  मदद  मिलती  थी  l   संत  रविदास  एक  ओर   अपने  लोगों  को  समझाते   और  कहते  ---- :;  तुम  सब  हिन्दू  जाति   के  अभिन्न  अंग  हो    ,  तुम्हे  दलित  जीवन  जीने  की  अपेक्षा   मानवीय  अधिकारों  के  लिए  संघर्ष  करना  चाहिए   और  दूसरी  ओर   वे  कुलीनों  से   भी  टक्कर  लेते ,    कहते   वर्ण  विभाजन  का  संबंध   मात्र  सामाजिक  व्यवस्था  से  है  l  "      उनकी   इस  अटूट  निष्ठा  का  ही  फल  था   कि   रामानंद  जैसे   महान  सवर्ण  संत   एक  दिन  स्वयं  ही    उनकी  कुटिया  में  पधारे    और  रविदास  को  दीक्षा  देकर   उनने  उनके   आदर्शों  की  प्रमाणिकता    को  खरा  सिद्ध  कर  दिया   l 

WISDOM -----

  '  सच्चे  गुरु  के  लिए   सैकड़ों  जन्म  समर्पित   हैं  ,  सच्चा  गुरु  वहां  पहुंचा  देता  है    जहाँ  शिष्य  अपने  पुरुषार्थ   से  कभी  नहीं  पहुँच  सकता   है  l  "   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' जो  भी  गुरुसत्ता  के  चरणों  में  ,  उनके  आदर्शों  के  प्रति     समर्पित  हो  ,  अपने  मन  व   बुद्धि  को  लगा  देता  है  ,  संशयों  को  मन  से  निकाल  देता  है  ,  उसके  जीवन  की  दिशा  धारा  ही  बदल  जाती  है   l   उसका  आध्यात्मिक  कायाकल्प  हो  जाता  है  l   आंतरिक  चेतना  के  परिमार्जन   एवं  उसके  विकास  के  लिए   जिस  दवा  की  आवश्यकता  होती  है  ,  वह  अत्यंत  दुर्लभ  होती  है  l   सामर्थ्यवान  गुरु  ही  ऐसी  दवा  देने  की  क्षमता  रखता  है   l "

23 July 2021

WISDOM -----

   लोकमान्य  तिलक  भारतीय  स्वाधीनता  के  सच्चे  उपासक  थे  ,  उन्हें    भारतीय     स्वाधीनता  का  मंत्रदाता   कहा  जाता  है  l   जिस  समय  लोग   स्वतंत्रता  का  नाम  लेने  का  भी  साहस  नहीं  कर  पाते  थे  , उस  समय  तिलक  महाराज  ने   उच्च  स्वर  से  घोषणा  की  कि ----- " स्वराज्य  हमारा  जन्म  सिद्ध  अधिकार  है   और  हम  उसे  लेकर  रहेंगे   l  "  जिस  समय   वर्ष  1908   में   उन  पर  राजद्रोह  का  प्रसिद्द  मुकदमा  चल  रहा  था  ,  उस  मुकदमे  में   उन्होंने  अपने  कार्य  और  विचारों   को  न्याययुक्त   सिद्ध  करने  के  लिए  स्वयं  ही  पैरवी  की    और  21  घंटे  तक  सिंह  की  तरह  गरज  कर   भाषण  करते  रहे   l   उनके  विचारों  से  भारत  की  जनता  जाग  न  जाए   इसलिए  उनको   देश  निकाले   का  दंड  देकर  बर्मा  की  मांडले   जेल  में  रखा  गया   l   वहां  उनकी  भाषा  को  समझने  वाला  कोई  नहीं  था   और  न  ही  कोई  परिचित  था  l   उन  छह  वर्षों  में  उन्होंने  ' गीता  रहस्य '  लिख  डाला   l   उनके  जेल  से  छुटकारे   के  बाद   ' गीता  रहस्य  ' प्रकाशित  हुआ   तो  यह  इतना  अधिक   प्रसिद्ध  हुआ  कि     दस  हजार  प्रतियाँ   कुछ  सप्ताह  में  ही  बिक   गईं  l   तिलक  महाराज  ने   इस  ग्रन्थ  के  द्वारा  सुशिक्षित  व्यक्तियों  का  ध्यान    कर्तव्य  पालन ,   समाज  म सेवा  और  जन कल्याण  की  और  आकर्षित  किया   l 

21 July 2021

WISDOM ----

   पं. श्रीराम    शर्मा   आचार्य   आचार्य जी  लिखते   हैं  ---- ' ओछापन  देर  तक  छिप  नहीं   सकता  और  जब  वह  प्रकट  होता   है  तब  अपने  ही  पराये  बन  जाते  हैं    और  वे  लोग  जो  आरम्भ  में   उनकी  प्रशंसा  किया  करते  हैं   वे  ही  अंत  में   निंदक  और  असहयोगी  बन  जाते  हैं   l   ओछे  व्यक्तित्व  के  मनुष्य  कभी  बड़े  काम  नहीं  कर  सकते   l   जिस  चतुरता  के  बल  पर   वे  नामवरी  और  सफलता  कमाने  की   आशा  लगाते   हैं  ,  अंत  में  वही  उन्हें  धोखा  देती  है   l   "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं  ----- "  यों   तो   सीमित   दायरे  में  जीवन   क्रम  रखने  वाले  को  भी    व्यक्तिगत  सफलताओं    के  लिए   उदात्त  दृष्टिकोण    रखना  अपेक्षित  है    पर  जिसे  सार्वजनिक   क्षेत्र  में  काम  करना  हो    उसे  ओछापन  छोड़कर    उदारता  और  साधुता   का  ही  अवलम्बन  करना  चाहिए   l  व्यक्तिगत  उत्कृष्टता  के  अभाव  में  मनुष्य  के  सारे  गुण   निरर्थक  हो  जाते  हैं  l  "

19 July 2021

WISDOM ------ सच्चा धर्म

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ----- ' धर्म  के  अभाव   में   कोई    भी  मनुष्य   सच्चा  मनुष्य  नहीं  बन  सकता   और  बिना  सेवाभाव  के    धर्म  का  कोई  महत्व   नहीं  है   l  '  पं. मदनमोहन  मालवीय    सनातन  धर्म  के  साकार  रूप  थे   l   धार्मिक  नियमों  की  रक्षा   और  उनके  पालन  को  वे  जीवन  का  सबसे  बड़ा  कर्तव्य  मानते  थे   l   उनकी  धर्म - भावना  में    घृणा  नहीं ,   प्रेम  की  प्रधानता  थी   l   वे  अपने  धर्म  के  कट्टर  अनुयायी  थे   लेकिन   जो  धार्मिक  नियम  रूढ़ि  बनकर  देश , जाति   अथवा  समाज  को  हानि  पहुँचाने  लगते   ,  उनका  त्याग  कर  देने  में    उन्हें  जरा  भी  संकोच  नहीं  होता  था   l  नित्य - प्रति  पूजा - पाठ  करना   मालवीय  जी  की  दिनचर्या  का   एक  विशेष  अंग  था   ,  किन्तु  मानवता  की  सेवा  करना    वे  व्यक्तिगत   पूजा - उपासना  से  भी    अधिक  बड़ा  धर्म  समझते  थे   l   इसका  प्रमाण  उन्होंने  उस  समय  दिया   जब  एक  बार  प्रयाग  में  प्लेग  फैला   l  असंख्य  नर - नारी    कीड़े -मकोड़ों  की  तरह  मरने  लगे  l   मित्र -पड़ोसी ,  सगे - संबंधी  सब  एक -दूसरे  को  असहाय   दशा  में  छोड़कर  भागने  लगे   l   किन्तु  मानवता  के  सच्चे  पुजारी  महामना   ही  थे   जिन्होंने  उस  आपत्तिकाल  काल  में   अपने  सारे  धार्मिक  कर्मकांड  छोड़कर   तड़पती  हुई   मानवता  की  सेवा  में   अपने  जीवन  को  दांव  पर  लगा  दिया   l  वे  घर,   , गली    पैदल  दवाओं  और  स्वयं  सेवकों  को  लिए   दिन  रात   रोगियों  को  खोजकर  उनके  घर  जाते  ,  उनकी  सेवा  करते  ,  उन्हें  दवा  देते  ,  उनके  मल - मूत्र  साफ   करते  ,  उनके   निवास   स्थान  तथा  कपड़ों  को  धोते   थे   l   इस  सेवा  कार्य  में  वे  स्वयं  का  नहाना - धोना ,  पूजा - पाठ।  खाना -पीना  सब  भूल  जाते    थे  l  यह  थी  महामना  की  सेवा  भावना   जिसके  लिए  वे  अपना    तन , मन , धन  सब  न्योछावर  करते  रहते  थे  l   उनके  धर्म  का  ध्येय  मानवता   की  सेवा  था  ,  जिसे  वह   जीवन  भर  सच्चाई  के  साथ  निभाते  रहे   l 

17 July 2021

WISDOM ------

    मनुष्यों  से  मिलकर  ही  समाज   बना  है   ,  इसलिए  समाज  में  जो  भी   समस्याएं  हैं ,  बुराइयाँ   हैं  उनके  लिए  मनुष्यों  की  दूषित  प्रवृतियाँ   ही  जिम्मेदार  हैं   l   स्वार्थ , लालच , अति महत्वाकांक्षा ,  ऊंच - नीच  ,  जाति - धर्म  के  आधार  पर  भेदभाव   --- इन  अनेक   दुर्गुणों  के  कारण  ही  समाज  में  विभिन्न  समस्याएं  पैदा  होती  हैं   l   ये  समस्याएं  मानव  समाज  के  लिए  तब  और  दुखदायी  हो  जाती  हैं    जब  लोगों  के  हृदय  में  संवेदना  नहीं  होती  l   जो  लोग  श्रेष्ठता  के  अहंकार  से  ग्रसित  हैं  ,   उनमे  संवेदना  नहीं  होती  ,  वे  स्वयं  को , अपनी  जाति , अपने  धर्म ,  अपनी  वस्तुओं ,  अपने  स्तर  के   लोग     और  अपनी  संतान  को  ही  श्रेष्ठ   समझते  हैं   कि   उन्हें  ही  इस  धरती  पर  जीने  का  हक  है   ,  शेष  सब  धरती  का  बोझ  हैं  ,  उन्हें   मिटाने   का  वे  हर  संभव  प्रयत्न  करते  हैं  l   यह    सब  आज  से  नहीं  युगों  से  हो  रहा  है   l    इसका   कारण   यही    है  कि  मनुष्य  की  चेतना   इतनी  भौतिक  प्रगति  के  बावजूद  भी  विकसित  नहीं  हुई  है  l   चेतना  के  स्तर  पर  वह  आज  भी  पशु  है   l  सुख - शांति  से  जीने  के  लिए   जरुरी  है   कि  मनुष्य  नैतिकता  को  जीवन  में  अपनाये , सन्मार्ग  पर  चले  ,  सारी   समस्याएं  स्वत  :  ही  हल  हो  जाएँगी   l 

14 July 2021

WISDOM ------

  राजर्षि   पुरुषोत्तम  दास   टंडन   जी  का  स्वप्न  था  कि  स्वाधीन  भारत  में  पश्चिम  का  अंधानुकरण  न  किया  जाये  ,  बल्कि  अपने  देश  की  संस्कृति   की  सुरक्षा   और  उसे   पुनर्जीवित  करने  का  कार्य   सरकार  को  करना  चाहिए   l  वे  चाहते  थे  कि  देश  में  ऐसा  वातावरण  तैयार  किया  जाये   जिससे  भारत  की  प्रतिष्ठा   संसार  में  पुन:  स्थापित  की  जा  सके   l   भारतीय  संस्कृति  की  रक्षा  के  लिए    टंडन  जी  के  विचारों  को  स्पष्ट  करते  हुए  सेठ  गोविंददास जी   ने  लिखा  है   ------ "  आजकल  दो  नए  शब्द  निकले  हैं  ---- प्रोग्रेसिव  ( प्रगतिवादी  )   तथा   दूसरा  ' नान  प्रोग्रेसिव  ( अप्रगतिवादी  )      उनके  अनुसार   यदि  अपनी   संस्कृति , अपनी  भाषा  से  किसी  को  प्रेम  हो    और   जो  भारत  को  इसके  अनुरूप  देखना  चाहता  हो   वह  ' अप्रगतिवादी  कहलाता  है   l   अपने  देश  की  मिटटी  से ,   उसकी  सभ्यता  से , संस्कृति  से  ,  उसके  धर्म  और  उसकी   भाषा  से  प्रेम  रखना   यदि  अप्रगतिवादी  विचारधारा  है  ,  तो  मैं  जानना  चाहूंगा    कि   आखिर  स्वाधीनता  और  स्वदेश  प्रेम  का   अर्थ  क्या  है   ?  यदि  भावी  भारत  का  निर्माण  भारतीय  आदर्शों  को  स्थिर  रखकर  करना  है   तो  हमको  अपनी   संस्कृति  की  रक्षा  करनी  होगी   l   वे  चाहते  थे  प्राचीन  गुरुकुल  प्रणाली   और  आधुनिक  शिक्षा  का  समन्वय  कर  के   भारतवर्ष  में  उपयुक्त  शिक्षा  विधि  का  प्रचार  किया  जाये   l  "  

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   घटना '  वन्दे   मातरम '  मन्त्र  के  प्रणेता  बंकिम  चंद्र   चट्टोपाध्याय   के  जीवन  की  है   -----    जिस  समय  बंकिम  बाबू  की  बदली  बंगाल  के  खुलना  जिले  में  हुई   तो  वहां  उन्होंने  नील  की  खेती  करने  वाले   किसानों  पर  अंग्रेजों  को  बड़ा  अत्याचार  करते  देखा    l   इनमे  सबसे  मशहूर  मारेल  साहब  था  ,  जिसने  मारेलगंज   नाम  का  एक  गाँव  ही  बसा  लिया  था   l   यहाँ  पाँच -छह  सौ   लाठी  चलाने   वाले  आदमी  अपने  पास  रखे  हुए  थे  ,  जिनके  बल  पर  वह  अपना  आतंक  लोगों   पर  कायम  किए   हुए  था   l   पर  एक  गाँव  ' बड़खाली '  पर  उसका  बस   नहीं  चलता  था  ,  क्योंकि  वहां  के  निवासियों  में  एकता  थी    l  वे  मिलकर  अत्याचारियों  का  मुकाबला  करते  थे   l    एक  बार  किसी  बात  पर  नाराज  होकर   मारेल  साहब  ने  ' बड़खाली  '  गाँव  पर  धावा  बोल  दिया   दोनों  पक्षों  में  बड़ा  घोर  संग्राम  हुआ  l  मारेल  साहब  का  दल  कमजोर  पड़ने  लगा   तो  उनके  दलपति  हेली  साहब  ने  बंदूक   चलाना   शुरू  किया    और  बड़खाली  के  नेता   रहीमुल्ला  को  मार  दिया  l   बंदूक   के  भय   से  गाँव  वाले  भाग  गए   तो  मारेल   साहब   के  दल   ने    गाँव  को  मनमाना   लूटा ,  औरतों  को  बेइज्जत  किया  और  घरों  को  जला  दिया  l   जैसे  ही  इस  घटना  का  समाचार  बंकिम  बाबू  को  मिला  ,  वे  पुलिस  का  एक   दल    लेकर  बड़खाली   की  तरफ  चले   ,  पर  तब  तक  मारेल  साहब  की  सेना  लूट  का  माल  और  स्त्रियों  को  लेकर    अपने  गाँव  पहुँच  चुकी  थी   l   बंकिम  बाबू  के  आने  का  समाचार  सुनकर  मारेल  साहब  और  हेली  साहब  तो  भाग  गए  ,  तो  भी  बंकिम  बाबू  ने  पीछा  कर  के   उनमे  से  कितनों  को  ही  पकड़ा   और  एक  को  फांसी   तथा  पच्चीस  को  काले  पानी  का  दंड  दिलाया   l   इस  घटना  से  अंग्रेजों  में  बड़ी  खलबली  मच  गई   और  लोगों  में  यह  चर्चा  होने  लगी   कि   '  " अंग्रेजों  ने  उस  आदमी  को   एक  लाख  रुपया  इनाम  देने  की  घोषणा  की  है    जो  बंकिम  बाबू  को  जान  से  मार  देगा  l  "  पर  बंकिम  बाबू  ने  इस  पर  ध्यान  न  दिया   और  निर्भीकता  से   अपना  काम  करते  रहे   l    ये  वो  समय  था  जब  अंग्रेजों  ने  बड़े - बड़े  भारतीयों   को  बुरी  तरह  कुचला  था ,  उस  समय  के  उनके  आतंक  का  अनुमान  लगाना  कठिन  है    l  पर  उस  जमाने   में  भी   बंकिम  बाबू  ने    भारतीयता    के  गौरव  को  अक्षुण्ण  रखा   l   वे  समझते  थे  कि   अंग्रेज  जातीय  दृष्टि  से   अपने  को   प्रत्येक  भारतवासी  से  श्रेष्ठ  समझते  हैं   और  उनका  अपमान  कर  देना  साधारण  बात  मानते  हैं   l   इसी  मनोवृत्ति  का  विरोध  करने  के  लिए    वे  किसी  भी  अन्याय  को  देखकर    अंग्रेज  अफसरों  से  लड़  जाते  थे   और  अपनी  योग्यता  और  सूझबूझ  के  आधार  पर     उनको  परास्त  भी  कर  देते  थे   l 

11 July 2021

WISDOM ------

     ज्यादातर  सार्वजनिक   कार्यकर्त्ता  ख्याति  के  लोभ  को  रोक  नहीं  पाते  हैं   और  किसी  न  किसी  प्रकार  अपने  को  जाहिर  कर  ही  बैठते  हैं    लेकिन  रुसी  क्रांति  के  महानायक  लेनिन   ऐसी  यश  की  लालसा  से  बहुत    ऊँचे  उठे  हुए  थे    और    बराबर  एक  अँधेरी  कोठरी  में   बैठे  हुए   गुप्त  रूप  से  अपना  काम  करते  रहे   l   उस  ससमय  अत्यंत  साधारण  और  गरीबी  की   दशा  में  रहने  पर  भी  लेनिन  एक  ऐसी  शक्तिशाली  संस्था  के   निर्माण  के  लिए  प्रयत्नशील  था   जो  जारशाही  का  तख्ता  पलट  दे  l   जिस  प्रकार  संसार  के  अन्य  विजयी  योद्धा  ---- सिकंदर , शिवाजी ,   नेपोलियन  आदि  छोटी  अवस्था  से  ही   अपने  भावी  साम्राज्य  की  कल्पना   किया  करते  थे  ,  उसी  प्रकार  लेनिन   ने  भी    ऐसी  कल्पना  की  थी  l   लेनिन  लन्दन  के   हाईगेट  कब्रिस्तान   में  कार्ल  मार्क्स   की  कब्र  के  पास  घंटों  तक  बैठकर    असीम  शक्तिशाली   भावी  बोल्शेविक  दल  का  स्वप्न  देखा  करता  था    l   अंतर  इतना  ही  था   कि   प्राचीन  काल  के  योद्धाओं  ने     देवताओं  अथवा  ईश्वर   का  नाम  लेकर   तलवार  उठाई  थी    जबकि  लेनिन  ने  कार्यक्रम  का  आधार   इतिहास   और  समाजशास्त्र  को  लेकर  बनाया  था   l 

9 July 2021

WISDOM ------

   मनोयोग  और  श्रमशीलता  के  बल  पर  अर्जित  आत्मविश्वास    से  ही  व्यक्ति  महानता  के  पथ  पर  अग्रसर  होता  है   l भारत  के  प्रथम  राष्ट्रपति      डॉ.  राजेंद्र  प्रसाद   सादगी , सरलता ,  उदारता , परोपकार   अदि  अनेक  गुणों  से  विभूषित  थे   l   उनका  एक  विशेष  गुण   था  कि   वे  एक  बार  जो  पढ़  लेते  थे    उसे  भूलते  नहीं  थे  l ----- एक  प्रसंग  है  ----- कांग्रेस  कार्यकारिणी  के  प्रधान  सदस्य  परेशान   थे   क्योंकि  वह  रिपोर्ट  नहीं    मिल     रही  थी    , जिसके  आधार  पर  महत्वपूर्ण   प्रस्ताव  पारित  करने  के  लिए    कार्यकारिणी   की    विशेष  बैठक  बुलाई  गई  थी   l   इस  रिपोर्ट  को  डॉ. राजेंद्र  प्रसाद  पढ़  चुके  थे   l   जब  उन्हें  इस  समस्या  की  जानकारी  मिली  तो  उन्होंने  कहा  ---- आवश्यक  हो  तो  उसे  पुन:  बोलकर  नोट   करा  सकता  हूँ   l   लोगों  को  विश्वास  न  हुआ  कि   इतनी  लम्बी  रिपोर्ट  एक  बार  पढ़ने  के  बाद  ज्यों  की  त्यों  लिखाई  जा  सकती  है   l   राजेंद्र  बाबू  सौ   से  भी  अधिक  पृष्ठ  लिखा   चुके   तब  वह  रिपोर्ट  मिल  गई   l   कौतूहल वश  लोगों  ने  मिलान  किया   तो  कहीं  भी  अंतर  नहीं  मिला  l   पंडित  नेहरू  ने  प्रशंसा  भरे  स्वर  में  पूछा  --- "  ऐसा  आला  दिमाग  कहाँ  से  पाया   राजेंद्र  बाबू   ?  "  उन्होंने  मुस्कराते  हुए  उत्तर  दिया  --- "  यह  दिमाग  दूध  से  बना  है  ,  अंडे  से  नहीं   l "

8 July 2021

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    निस्पृह  देशभक्त  ---- राजा  महेंद्र  प्रताप  ------  मुरसान  रियासत  के  राजकुमार  और   हाथरस  राज्य  के  दत्तक  उत्तराधिकारी    राजा  महेंद्र  प्रताप    ऐसा  वैभव   और  ऐसा  राजत्व  सुरक्षित  रखने  को  तैयार  नहीं  थे   जिसके  लाभ  से   गुलामी  को  प्रश्रय  देने  को  तैयार  होना  पड़े   l   उन्हें  देशभक्ति  के  मूल्य  पर   संसार  का  कोई  भी  वैभव  और  कोई  भी  सुख - सुविधा  स्वीकार  नहीं  थी   l   अन्य  देशी  राजाओं  की  भाँति   उनकी  शिक्षा - दीक्षा  भी   अंग्रेजी  ढंग  से  इंग्लैंड   में  हुई   किन्तु  जैसे  ही   वे  भारत  वापस  आए   उन्होंने  सारी   वैदेशिकता   झाड़  फेंकी   और  विशुद्ध  भारतीयता  में  आ  गए  l  भारतीय  वेशभूषा , आचार - विचार , रहन - सहन  , आहार  आदि   भारतीयता  ही  उनकी  शोभा  बन  गई  l   1906   में  वे  ' कलकत्ता  कांग्रेस '  में  आ  गए   और  सबसे  पहला  काम  यह  किया  कि   अपने  सारे  विदेशी  वस्त्र  जला  दिए   और  खादी   धारण  कर  ली   l   इस  म कार्य    उनकी  पत्नी   भी  सहयोग  करने  को  तैयार  न  हुईं    और  उन्होंने    एक  तौलिया  का  त्याग  ही  बड़ी   भारी   तपस्या  समझी  l   किन्तु  राजा  महेंद्र  प्रताप  ने    उन  पर  जड़ता  की  छाया  समझकर  बुरा  न  माना    और  सोच  लिया  कि   सत्य  का  दर्शन    और  भक्ति  की  भावना  सबके  भाग्य  में  नहीं  होती   l   राजा  महेंद्र  प्रताप  ऊंच - नीच  तथा  वर्णवाद    की  भावना  के  कट्टर  विरोधी  थे  ,  उनका  कहना  था  कि   मनुष्य  का  सच्चा  धर्म  प्रेम  है   l   उनके  कोई  संतान  नहीं  थी  ,  उन्होंने   वृंदावन  की  सीमा  में  ' प्रेम  महाविद्यालय  '  स्थापित  किया  और  अपनी  इस  संतान  का  नामकरण  संस्कार    महामना  मालवीय  जी  से  कराया   और  अपनी  संतान  की  तरह  इसका  पालन - पोषण  किया   l 

7 July 2021

WISDOM ------ सामाजिक मूल्य एवं आदर्श श्रेष्ठ व्यक्तित्व संपन्न महान व्यक्तियों के माध्यम से ही सुरक्षित रहते हैं l

              वर्तमान  समय  में  श्रेष्ठ  व्यक्तित्व  संपन्न  मनीषियों    और   विचारकों   के   अभाव   के  कारण    समाज   रुग्ण   और   जर्जर   हो   चुका   है    यदि   वातावरण   मूल्यहीनता   रूपी  प्रदूषण   से  ओत - प्रोत   हो   तो  समाज  में   अनैतिक    और  स्वार्थी  व्यक्तियों    की  भरमार   होती  है   l   आज  स्वार्थ   सर्वोपरि   हो  गया  है   और  मूल्य , नीति , आदर्श   व  परम्पराएं    बीते  दिनों  की  बात  बन  गई  हैं   l   ऐसे  श्रीहीन    समाज  में  अनीति  , आतंक   और  अत्याचार  पनपते  हैं   l   समाज   में  शूरवीरों   की  संख्या  घटने  लगती  है   और   लोगों  में  कायरता  बढ़ने  लगती  है   l   इस  जर्जर  समाज  को   पुनर्जीवित   करने  के  लिए    समर्थ  मार्गदर्शकों   की  आवश्यकता   होती   है   l   पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य  जी  का  कहना  है   ----- "  आज  की  परिस्थितियां  बहुत  बदल  गईं   हैं  ,  सत्संग ,  उच्च  कोटि  के   सत्यवादी  ,  प्रखर   एवं  निस्पृह  व्यक्तित्व  के  धनी   बहुत  ही  कम  देखने  को  मिलते  हैं  ,  उनके  आचरण  में  वे    गुण    न  उतर  पाने  के  कारण    कोई  प्रभाव  जनमानस  पर   पड़ता  नहीं  देखा  जाता  l  इस  स्थिति  में  सामान्य  जनता  के   व्यक्तित्व  को  ऊँचा  उठाने   का  एकमात्र  उपाय  ,  महापुरुषों  के  संस्मरण  का  स्वाध्याय  ही  माना  जा  सकता  है   l   छोटे - छोटे  संस्मरण  पढ़ने  में  भी  सहज   होते  हैं    और  मर्मस्थल  को  स्पर्श  करते  हुए  जीवन  की  राह  बदल  देते  हैं    ' देखन  में  छोटे  लगें  ,  घाव  करें  गम्भीर  l  '   

4 July 2021

WISDOM

  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  संसार    के  मनुष्य  किसी  सफल  मनोरथ   और  सौभाग्यशाली  व्यक्ति  के  बाहरी  रूप  को  देखकर   यह  अभिलाषा  तो  करते  हैं   कि   हम  भी  ऐसे  ही  बन  जाएँ  ,  पर  इस  बात  पर  बहुत  कम  ध्यान  देते  हैं   कि   इस  स्थिति  को   प्राप्त  करने   के  लिए   पहले   उन्होंने  त्याग ,  तपस्या ,  कष्ट सहन   , एकांतवास   आदि  का  जीवन  व्यतीत  कर  के   अपने  आचरण  को  सुदृढ़  बनाया  है  l   लोग  वृक्ष  के  पके  मधुर  फलों  को  देखते  हैं  ,  पर  इस  पर  विचार  नहीं  करते   कि   इसको  लगाने   और  वर्षों  तक  खाद - पानी   देकर  रक्षा  करने  में   कितना  परिश्रम  करना  पड़ा  है   l  "    

3 July 2021

WISDOM ------

   महापुरुषों  के  सम्मुख    अनेक     प्रलोभन  प्राय:  आया  करते  हैं  ,  पर  सच्चे  आत्मज्ञानी  सदा  उनकी  उपेक्षा  करते  हैं   l   स्वामी  दयानन्द   सरस्वती    के  जीवन  का  प्रसंग  है  -----  एक  दिन  एकांत  में  उदयपुर  के  महाराणा  उनसे  मिले   तो  कहने  लगे  ----- " भगवन  !  आप  मूर्ति पूजा  का  खंडन  छोड़  दें   l   यह  राजनीति   के   सर्व  ' संग्रह  '  सिद्धांत  के  प्रतिकूल  है   l   यदि  आप  इस  बात  को    मान    लें   तो  उदयपुर  के   एकलिंग  महादेव   के  मंदिर  की  गद्दी   आपकी  ही  है  l   वैसे  हमारा  समस्त  राज्य  ही   उस  मंदिर   में  समर्पित  है   पर  मंदिर  में  राज्य  का  जितना  भाग  लगा  हुआ  है   उसको  भी  लाखों  रूपये  की  आय  है   l   इतना    भारी    ऐश्वर्य  आपका  हो  जायेगा   और  आप  समस्त  राज्य  के  गुरु  माने  जायेंगे   l  "     यह  सुनते  ही    स्वामी  जी  रोष  से  बोले  ---- " महाराज  !  आप  मुझे  तुच्छ  प्रलोभन  दिखाकर   परमात्म देव  से  विमुख  करना  चाहते  हैं   l   उसकी  आज्ञा   भंग  कराना   चाहते  हैं   ?  राणाजी !  आपके  जिस  छोटे  से  राज्य   और  मंदिर  से  मैं  एक  दौड़  लगाकर   बाहर  जा  सकता  हूँ  ,  वह  मुझे  अनंत  ईश्वर  की  आज्ञा   भंग  करने  के  लिए   विवश  नहीं  कर  सकता   l   परमात्मा  के  परम  प्रेम  के  सामने   इस  मरुभूमि  की   मायाविनी  मारीचिका   अति  तुच्छ  है  l   फिर  मुझसे  ऐसे   शब्द  मत  कहियेगा   l   मेरे  धर्म  की  ध्रुव  धारणा   को   धराधाम  और  आकाश  की  कोई  वस्तु  डगमगा  नहीं  सकती   l  "  स्वामी  दयानन्द जी  को  इस  प्रकार  के  प्रलोभन   जीवन  में  अनेक  बार  दिए  गए   l                               काशी  नरेश  ने   उनसे  भारत   प्रसिद्ध   विश्वनाथ  मंदिर  का  अध्यक्ष   बनने  का  प्रस्ताव  किया  था   l    गुजरात    में  एक  वकील  ने    उनसे  कहा  ---- "  आप  मूर्ति  पूजा  का  विरोध  करना  छोड़  दें   तो  हम  आपको  शंकर  जी  का   अवतार    मानने    लगें   l  "  पर  उन्होंने  सदैव    यही   कहा  कि   मेरा  कार्य  देश  और  जाति   की  सेवा  करना  है  l   मैं  परमात्मा  के  दिखाए  मार्ग  से    कभी     विमुख    नहीं  हो  सकता   l 

1 July 2021

WISDOM -------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'अपनी  वास्तविकता  को  छिपाकर   आवरण  ओढ़कर  ,  ढोंग  व  आडम्बर  कर  के  जो  कार्य  किया  जाता  है  ,  तुरंत  तो  वैसा  करना  लाभदायक  दीखता  है  ,  लेकिन  उसका  परिणाम  दुःखद   ही  होता  है   l   इसलिए  व्यक्ति  को  अपनी  सच्चाई  नहीं  छुपानी  चाहिए  ,  आडम्बरयुक्त  जीवन  का  चयन  नहीं  करना  चाहिए   l ,  बल्कि  सच्चाई  के  साथ  जीवन  जीना  चाहिए   क्योंकि  ऐसा  जीवन  ही  व्यक्ति  को  वह  आत्मबल  प्रदान  करता  है    जिसके  माध्यम  से  वह  आध्यात्मिक  जीवन  में  प्रवेश  पा  सकता  है   l ----------