लोकमान्य तिलक भारतीय स्वाधीनता के सच्चे उपासक थे , उन्हें भारतीय स्वाधीनता का मंत्रदाता कहा जाता है l जिस समय लोग स्वतंत्रता का नाम लेने का भी साहस नहीं कर पाते थे , उस समय तिलक महाराज ने उच्च स्वर से घोषणा की कि ----- " स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे l " जिस समय वर्ष 1908 में उन पर राजद्रोह का प्रसिद्द मुकदमा चल रहा था , उस मुकदमे में उन्होंने अपने कार्य और विचारों को न्याययुक्त सिद्ध करने के लिए स्वयं ही पैरवी की और 21 घंटे तक सिंह की तरह गरज कर भाषण करते रहे l उनके विचारों से भारत की जनता जाग न जाए इसलिए उनको देश निकाले का दंड देकर बर्मा की मांडले जेल में रखा गया l वहां उनकी भाषा को समझने वाला कोई नहीं था और न ही कोई परिचित था l उन छह वर्षों में उन्होंने ' गीता रहस्य ' लिख डाला l उनके जेल से छुटकारे के बाद ' गीता रहस्य ' प्रकाशित हुआ तो यह इतना अधिक प्रसिद्ध हुआ कि दस हजार प्रतियाँ कुछ सप्ताह में ही बिक गईं l तिलक महाराज ने इस ग्रन्थ के द्वारा सुशिक्षित व्यक्तियों का ध्यान कर्तव्य पालन , समाज म सेवा और जन कल्याण की और आकर्षित किया l
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