पं. श्रीराम शर्मा आचार्य आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ओछापन देर तक छिप नहीं सकता और जब वह प्रकट होता है तब अपने ही पराये बन जाते हैं और वे लोग जो आरम्भ में उनकी प्रशंसा किया करते हैं वे ही अंत में निंदक और असहयोगी बन जाते हैं l ओछे व्यक्तित्व के मनुष्य कभी बड़े काम नहीं कर सकते l जिस चतुरता के बल पर वे नामवरी और सफलता कमाने की आशा लगाते हैं , अंत में वही उन्हें धोखा देती है l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं ----- " यों तो सीमित दायरे में जीवन क्रम रखने वाले को भी व्यक्तिगत सफलताओं के लिए उदात्त दृष्टिकोण रखना अपेक्षित है पर जिसे सार्वजनिक क्षेत्र में काम करना हो उसे ओछापन छोड़कर उदारता और साधुता का ही अवलम्बन करना चाहिए l व्यक्तिगत उत्कृष्टता के अभाव में मनुष्य के सारे गुण निरर्थक हो जाते हैं l "
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