राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी का स्वप्न था कि स्वाधीन भारत में पश्चिम का अंधानुकरण न किया जाये , बल्कि अपने देश की संस्कृति की सुरक्षा और उसे पुनर्जीवित करने का कार्य सरकार को करना चाहिए l वे चाहते थे कि देश में ऐसा वातावरण तैयार किया जाये जिससे भारत की प्रतिष्ठा संसार में पुन: स्थापित की जा सके l भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए टंडन जी के विचारों को स्पष्ट करते हुए सेठ गोविंददास जी ने लिखा है ------ " आजकल दो नए शब्द निकले हैं ---- प्रोग्रेसिव ( प्रगतिवादी ) तथा दूसरा ' नान प्रोग्रेसिव ( अप्रगतिवादी ) उनके अनुसार यदि अपनी संस्कृति , अपनी भाषा से किसी को प्रेम हो और जो भारत को इसके अनुरूप देखना चाहता हो वह ' अप्रगतिवादी कहलाता है l अपने देश की मिटटी से , उसकी सभ्यता से , संस्कृति से , उसके धर्म और उसकी भाषा से प्रेम रखना यदि अप्रगतिवादी विचारधारा है , तो मैं जानना चाहूंगा कि आखिर स्वाधीनता और स्वदेश प्रेम का अर्थ क्या है ? यदि भावी भारत का निर्माण भारतीय आदर्शों को स्थिर रखकर करना है तो हमको अपनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी l वे चाहते थे प्राचीन गुरुकुल प्रणाली और आधुनिक शिक्षा का समन्वय कर के भारतवर्ष में उपयुक्त शिक्षा विधि का प्रचार किया जाये l "
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