14 July 2021

WISDOM ------

  राजर्षि   पुरुषोत्तम  दास   टंडन   जी  का  स्वप्न  था  कि  स्वाधीन  भारत  में  पश्चिम  का  अंधानुकरण  न  किया  जाये  ,  बल्कि  अपने  देश  की  संस्कृति   की  सुरक्षा   और  उसे   पुनर्जीवित  करने  का  कार्य   सरकार  को  करना  चाहिए   l  वे  चाहते  थे  कि  देश  में  ऐसा  वातावरण  तैयार  किया  जाये   जिससे  भारत  की  प्रतिष्ठा   संसार  में  पुन:  स्थापित  की  जा  सके   l   भारतीय  संस्कृति  की  रक्षा  के  लिए    टंडन  जी  के  विचारों  को  स्पष्ट  करते  हुए  सेठ  गोविंददास जी   ने  लिखा  है   ------ "  आजकल  दो  नए  शब्द  निकले  हैं  ---- प्रोग्रेसिव  ( प्रगतिवादी  )   तथा   दूसरा  ' नान  प्रोग्रेसिव  ( अप्रगतिवादी  )      उनके  अनुसार   यदि  अपनी   संस्कृति , अपनी  भाषा  से  किसी  को  प्रेम  हो    और   जो  भारत  को  इसके  अनुरूप  देखना  चाहता  हो   वह  ' अप्रगतिवादी  कहलाता  है   l   अपने  देश  की  मिटटी  से ,   उसकी  सभ्यता  से , संस्कृति  से  ,  उसके  धर्म  और  उसकी   भाषा  से  प्रेम  रखना   यदि  अप्रगतिवादी  विचारधारा  है  ,  तो  मैं  जानना  चाहूंगा    कि   आखिर  स्वाधीनता  और  स्वदेश  प्रेम  का   अर्थ  क्या  है   ?  यदि  भावी  भारत  का  निर्माण  भारतीय  आदर्शों  को  स्थिर  रखकर  करना  है   तो  हमको  अपनी   संस्कृति  की  रक्षा  करनी  होगी   l   वे  चाहते  थे  प्राचीन  गुरुकुल  प्रणाली   और  आधुनिक  शिक्षा  का  समन्वय  कर  के   भारतवर्ष  में  उपयुक्त  शिक्षा  विधि  का  प्रचार  किया  जाये   l  "  

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