' सफलता जिस ताले में बंद रहती है वह दो चाबियों से खुलता है --- एक परिश्रम और दूसरा सत्प्रयास l कोई भी ताला यदि बिना चाबी के खोला गया तो आगे उपयोगी नहीं रहेगा l इसी प्रकार यदि परिश्रम और प्रयास नहीं किया गया तो कोई भी थोपी गई सफलता टिक न सकेगी l परिश्रम और प्रयास के साथ जरुरी है ' मनोयोग ' -- जो समस्त सफलताओं की कुंजी है l ---------- रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने कमरे में बैठे कविता लिखने में व्यस्त थे कि इतने में छुरा लिए हुए एक गुंडे ने उनके कमरे में प्रवेश किया l उसे किराये पर हत्या करने के लिए किसी ईर्ष्यालु ने भेजा था l उन्होंने आँख उठाकर उसकी तरफ देखा और सारा मामला भांप लिया l उनने उंगली का इशारा कर के शांत भाव से चुपचाप एक कोने में पड़े स्टूल पर बैठ जाने को कहा और बोले --- ' देखते नहीं मैं कितना जरुरी काम कर रहा हूँ l ' और फिर वे एकाग्रचित्त अपना काम करने लग गए l हत्यारा सकपका गया l इतना निर्भीक और संतुलित व्यक्ति उसने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था l वह कुछ देर तो बैठा रहा लेकिन फिर बहुत घबरा गया और उलटे पैरों भाग खड़ा हुआ l
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