कलियुग की सबसे बड़ी समस्या है कि इस युग में मनुष्य की पहचान कठिन है l जो जैसा दिखाई देता है , वो वैसा है नहीं l त्रेतायुग में यह स्पष्ट था कि राक्षस कौन है ? सीता हरण रावण ने ही किया था , सच सबके सामने था , कुम्भकरण कौन , मेघनाद कौन , खर , दूषण कौन , सब जानते थे कि ये राक्षस हैं , समाज में आतंक मचाते हैं , ऋषियों को तंग करते हैं l इसी तरह द्वापरयुग में यह सब जानते थे कि कि दुर्योधन , शकुनि , दु:शासन आदि पांडवों पर अत्याचार कर रहे हैं , उनका हक छीन रहे हैं l लेकिन वर्तमान युग में देवता और असुर की पहचान करना सबसे कठिन काम है l कहते हैं अच्छाई में गजब का आकर्षण होता है इसलिए बुरे से बुरा व्यक्ति भी अच्छाई का आवरण ओड़ कर समाज में आराम से रहता है l रावण के दस सिर थे , जो उसने तपस्या कर शिवजी को अर्पित किए थे लेकिन आज मनुष्य नकाब पहन कर अपने विभिन्न सिरों का प्रयोग उन गतिविधियों में करता है जो अँधेरे में होती हैं l यही कारण है कि समाज में अपराध , तनाव , अशांति बढती जा रही है l एक ओर लोगों को अपने नकाब सँभालने के लिए बहुत धन खर्च करना पड़ता है , जुगाड़ करनी पड़ती है , तनाव उत्पन्न होता है दूसरी ओर ब्लैक मेलिंग करने वालों का व्यवसाय चमक जाता है , इस सब में जो पीड़ित है वह अपने ही भाग्य को दोष दे पाता है l यह स्थिति भगवान के लिए भी बड़ी कठिन हो गई , किसे पहले दंड दें ? जो अपराध करता दीख रहा है उसे , या फिर जो इसका सूत्रधार है उसे ? इसलिए कलियुग में प्राकृतिक प्रकोप बहुत होते हैं l जानबूझकर , छिपकर , कायरतापूर्ण तरीके से जो अपराध होते हैं उनसे प्रकृति भी क्रोधित हो जाती है और सामूहिक दंड विधान लागू होता है l जब मनुष्य की चेतना जाग्रत होगी , विचार परिष्कृत होंगे तभी स्थिति में सुधार होगा l
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